EXCLUSIVE: अखिलेश सरकार में क्या है यादवों की हत्या का राज? दिल थामकर पढ़ें ये खास तहकीकात

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उत्तरप्रदेश की पूर्व समाजवादी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में एक ही विधानसभा क्षेत्र में तकरीबन दो दर्जन यादव समुदाय से सम्बन्ध रखने वालों की हत्याएं होती रहीं और यदुवंशियों यानी ‘यादवों’ के रक्षक चुप्पी साधकर बैठे रहे। हैरानी इस बात का है कि आखिर वो कौन सी वजह थी कि यदुवंशियों के साम्राज्य में एक ही विधानसभा क्षेत्र में चुन-चुनकर यादवों की हत्याएं होती रहीं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जांच तक करवाने की जरूरत महसूस नहीं की।

‘दृष्टान्त’ पत्रिका ने एक खास तहकीकात के जरिए पता लगाया है कि अखिलेश राज के दौरान यूपी के प्रतापगढ़ जिले में करीब 2 दर्जन यादवों की हत्याएं हुईं और इन सभी हत्याओं के पीछे कहीं न कहीं कुण्डा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और उनके पिता राजा उदय प्रताप सिंह का नाम परोक्ष-अपरोक्ष रूप से सामने आता रहा है।

गौरतलब है कि कुण्डा का यह युवराज लगभग प्रत्येक सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री का करीबी बनकर रहा है। साल 1993 से राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ था। हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में राजा भैया एक बार फिर कुण्डा विधानसभा से रिकार्ड मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। ‘दृष्टान्त’ पत्रिका की तहकीकात बताती है कि अखिलेश राज में एक ही जिले में यादवों की दो दर्जन हत्याएं कहीं न कहीं यह साबित करने के लिए काफी हैं कि राजा भैया के एकछत्र राज को जिस किसी ने चुनौती दी है, उसका अस्तित्व ही मिटा दिया गया। राजा भैया के एक करीबी का दावा है कि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में कुण्डा समेत पूरे प्रतापगढ़ जिले में यादवों ने दबंगई के साथ अपनी राजनीतिक जड़ें जमानी शुरु कर दी थीं। यह बात राजा भैया को रास नहीं आयी। हुआ वही जिसका पहले से ही अंदाजा था। अखिलेश यादव के कार्यकाल में लगभग दो दर्जन हत्याएं राजा के वर्चस्व को चुनौती देने वालों को सबक सिखाने से जुड़ी हुई हैं।

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कोबरापोस्ट की तहकीकात में सामने आया सीओ जियाउल हक की हत्या के पीछे का सच

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अपनी दबंगई को लेकर पिछले डेढ़ दशकों से चर्चा में हैं लेकिन अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में प्रतापगढ़ के क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या किए जाने के बाद वे एक बार फिर सुर्खियों में आए थे। कोबरापोस्ट की टीम ने अपनी तहकीकात के जरिए ये हकीकत आपको दिखाने की कोशिश की थी कि प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील में हुई सीओ जिला-उल-हक की हत्या की सुई भी राजा भैया पर आकर ही अटक जाती है, आखिर क्यों?

आरोप है कि ये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कृपा का ही नतीजा है कि सरकार की तरफ से ठोस पैरवी न किए जाने की दशा में न्यायपालिका ने इन्हें दोषमुक्त करते हुए क्लोजर रिपार्ट लगा दी। गौरतलब है कि प्रतापगढ़ जनपद के क्षेत्राधिकारी रहे जियाउल हक की हत्या (2 मार्च 2013 में) उस वक्त कर दी गयी थी जिस वक्त जियाउल हक वलीपुर में बवाल को शांत करवाने पहुंचे थे। इस घटना में प्रधान नन्हें यादव की भी मौत हुई थी।

सरकार गिरने तक जारी रहा खूनी खेल

‘दृष्टान्त’ पत्रिका ने प्रकाशित किया है कि सीओ की हत्या मामले में नन्हें यादव का बेटा योगेन्द्र यादव मुख्य आरोपियों में शामिल था जो बाद में सरकारी गवाह बनने के लिए भी तैयार हो गया था।

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हाल ही में राजा भैया एक बार फिर से उस वक्त सुर्खियों में आए जब योगेन्द्र यादव की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी। चूंकि सीओ जियाउल हक की हत्या में योगेन्द्र यादव चौथे आरोपी थे लिहाजा उसके पास सीओ की हत्या से जुडे़ कुछ रहस्य ऐसे थे जो राजा भैया को एक बार फिर से सलाखों के पीछे पहुंचा सकते थे। सीओ के हत्यारोपी योगेन्द्र की लाश मतगणना से ठीक एक दिन पहले 10 मार्च 2017 को ऊंचाहार के अरखा गांव के पास मिली थी। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि योगेन्द्र यादव की उस वक्त सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी जिस वक्त वे अपनी बाइक से जा रहे थे। योगेन्द्र को एक ट्रक ने पीछे से टक्कर मारकर घायल कर दिया था। अस्पताल ले जाते समय ही योगेन्द्र की मौत हो गयी थी। इस कथित हत्या को दुर्घटना बताकर पल्ला झाड़ने वाली पुलिस और राजा भैया की मुसीबतें उस वक्त बढ़नी शुरु हुई जब योगेन्द्र के चाचा सुधीर यादव ने ऊंचाहार कोतवाली में राजा भैया और उनके पिता अक्षय प्रताप सिंह समेत राजा भैया के निजी मैनेजर नन्हें सिंह, बलीपुर हथगवां निवासी संजय प्रताप सिंह और इसी गांव के अजय सिंह के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करवायी। योगेन्द्र के चाचा सुधीर यादव का दावा है कि विधायक राजा भैया, एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह और उनके अन्य दो साथियों ने उनके भतीजे योगेन्द्र यादव की हत्या कर उसे सड़क हादसे का नाम दिया गया। सुधीर ने कोतवाली में जो तहरीर दी है उसके मुताबिक राजा भैया ने इससे पहले भी उसके दो बडे़ भाईयों नन्हें और सुरेश यादव की हत्या करवा दी थी। वलीपुर में बवाल के दौरान नन्हें यादव की हत्या सीओ जियाउल हक की गोली से किए जाने की बात कही गयी थी जबकि सुधीर यादव का कहना है कि नन्हें यादव क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या करने वाले को अच्छी तरह से पहचानते थे। यदि वे जीवित रहते तो राजा भैया समेत कई बाहुबली सलाखों के पीछे नजर आते। चूंकि सीओ जियाउल हक की हत्या में योगन्द्र यादव आखिरी मजबूत गवाह साबित हो सकते थे लिहाजा राजा भैया ने साजिश के तहत उसे भी रास्ते से हटाकर राजनीति के रास्ते में आने वाले कांटे को साफ कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ कि चुनाव मतगणना से पूर्व ही यह चर्चा होने लगी थी कि योगेन्द्र यादव पुलिस के सामने कभी भी टूट सकता है। कहा तो यहां तक जा रहा था कि योगेन्द्र यादव सरकारी गवाह तक बनने के लिए तैयार हो गया था और राजा भैया को इस बात की भनक लग गयी थी। राजा भैया के इसी डर ने योगेन्द्र यादव को रास्ते से हटाने पर मजबूर कर दिया।

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योगेन्द्र यादव और नन्हें यादव की हत्या तो महज एक बानगी भर है जबकि अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में कुण्डा के इस बाहुबली राजा भैया पर दो दर्जन से भी ज्यादा यादवों की हत्या का आरोप लगाया जा रहा है। हालांकि यादवों ही हत्या को लेकर शक की सुई व्यक्ति विशेष (राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह) की ओर ही घूमती रही है फिर भी यादवों की सरकार के कार्यकाल में कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ती की जाती रही।

अगले स्लाइड में पढ़ें – अखिलेश राज में यदुवंशियों की मर्डर मिस्ट्री का पूरा सच, आंकड़ों के साथ

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