EXCLUSIVE: अखिलेश सरकार में क्या है यादवों की हत्या का राज? दिल थामकर पढ़ें ये खास तहकीकात

0
2 of 3
Use your ← → (arrow) keys to browse

यह कहने में कतई गुरेज नहीं कि पूर्ववर्ती अखिलेश राज में सरकार और पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की ताकत और राजनीति का पूरा ताना-बाना यादव से शुरू होकर यादव पर ही खत्म होता है। सत्ता के प्रमुख पदों से लेकर पार्टी और नौकरशाही, सरकारी महकमें, पुलिस नियुक्तियां, ठेकेदारी यहां तक कि पुरस्कार-सम्मान आदि को भी नियंत्रित और तय करने का काम यादव बिरादरी करती रही है। ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि मुलायम सिंह यादव और राज्य सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उनके कार्यकाल में एक ही विधानसभा क्षेत्र में एक के बाद एक करीब दो दर्जन यादवों की दर्दनाक हत्याएं कर दी जाती हैं और उन हत्याओं की डोर एक व्यक्ति के हाथ में होने के स्पष्ट संकेत मिलते हुए भी न तो अभी तक कोई  ठोस कार्रवाई होती है और न ही जाति के नाम पर सत्ताधारी यादव परिवार का खून गर्म खौलता है।

राजधानी लखनऊ से महज 145 किमी की दूरी पर स्थित कुंडा विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में यादव बिरादरी के उस शख्स को मौत की नींद सुला दिया गया, जिसने साल 2012 में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने की हिम्मत की थी। इस शख्स का नाम रमाशंकर यादव था। दरअसल साल 2012 विधानसभा चुनाव में रमाशंकर कांग्रेस से उम्मीदवार थे। उनकी सुरक्षा के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा दे रखी थी, लेकिन 2014 में कांग्रेस के सत्ता से हटते ही उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा मौजदूा सरकार ने हटा ली थी। कुण्डा के नवाबगंज थाना क्षेत्र के आलापुर निवासी रमाशंकर यादव करीब छह महीने पहले ही सपा में शमिल हुए थे। 12 दिसंबर की रात उनके घर में घुसकर दो अज्ञात लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।

इसे भी पढ़िए :  नई पार्टी बनाएंगे योगेंद्र यादव, 31 जुलाई को करेंगे घोषणा

कुण्डा क्षेत्र में यादव बिरादरी वाले रमाशंकर की यह पहली हत्या नहीं है, बल्कि अखिलेश सरकार के 5 सालों में केवल कुण्डा विधानसभा क्षेत्र में ही यादव बिरादरी के 24 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। इनमें कोई ग्राम प्रधान था तो कोई सियासी और आर्थिक रूप से मजबूत होने वाला शख्स था।

अखिलेश सरकार के कार्यकाल में अगर कुण्डा विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो यादव समुदाय से जुडे़ लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। इसे अखिलेश सरकार की नाकामी कहें या फिर कुण्डा के राजा का आतंक जो अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए न सिर्फ वर्ग विशेष पर कहर बनकर टूटता रहा बल्कि सूबे की अखिलेश सरकार पर भी हावी रहा।

इसे भी पढ़िए :  मोदी की यात्रा भारत वियतनाम के बीच स्थापित संबंधों में नया अध्याय शुरू करेगा: वियतनाम

अखिलेश सरकार के कार्यकाल में मारे गए यादव बिरादरी के लोग

नाम                             स्थान

रमाशंकर यादव                   आलापुर

सुरेश यादव                     मधवापुर

नन्हें यादव                      बलीपुर

सुरेश यादव                     बलीपुर

अशोक यादव                    भदरी

रामलखन                       बिहार

श्रीनाथ यादव                    भवानी का पुरवा

राम अभिलाष यादव               चकिया मौली

जगन्नाथ यादव                  कुशहिला बजार

राजेंद्र यादव और उनके दो भाई       मोती का पुरवा

दिनेश यादव                     मानिकपुर

गब्बर यादव                     डीटा

लाला यादव                     दलापुर

त्रिभवुन यादव                    संग्रामपुर

राकेश यादव                     संग्रामपुर

जवाहर लाल यादव                संग्रामपुर

सुरेश यादव                     धीमा में इटौरा

रामसुमेर यादव                   पूरेधनऊ

भाईलाल यादव                   मौली तीन पेडत्रा

वकील यादव                     बने मऊ

संतोष यादव                     फरेदपुर

राजपति यादव                         आजाद नगर

 

अब ज़रा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का आपराधिक इतिहास भी पढ़ लीजिए

इसे भी पढ़िए :  नोटबंदी के कारण जीडीपी के साथ हर सेक्टर में बड़ी गिरावट

3 नवंबर, 2002

भाजपा विधायक पूरन सिंह को जान से मारने की धमकी के आरोप में गिरफ्तार हुए।

23 नवंबर, 2002

समर्थकों के घर से शराब दुकानों के दस्तावेज मिलने पर रघुराज के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया।

24 नवंबर, 2002

रघुराज और एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह गिरफ्तार किए गए।

01 दिसंबर, 2002

रघुराज और उनके पिता उदय सिंह के खिलाफ डकैती और घर कब्जाने के मामले में मुकदमा दायर हुआ।

25 जनवरी, 2003

रघुराज तथा उदय प्रताप सिंह के घर छापा, हथियार और विस्फोटक बरामद।

29 जनवरी, 2003

रघुराज के तालाब से कंकाल बरामद होने के बाद उन पर हत्या का आरोप।

5 मई, 2003

उत्तर प्रदेश की तत्कानील मायावती सरकार ने रघुराज प्रताप सिंह, उनके पिता उदय प्रताप सिंह और रिश्तेदार अक्षय प्रताप के खिलाफ पोटा के तहत मुकदमा चलाने को मंजूरी दी।

14 नवंबर, 2005

रघुराज और उनके पिता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कानपुर के पोटा कोर्ट में समर्पण किया।

17 दिसंबर, 2005              

जमानत मिलने के बाद रघुराज जेल से रिहा हुए।

अगले स्लाइड में पढ़ें- पिछली सरकार में आखिर क्यों टारगेट पर थे यादव?

2 of 3
Use your ← → (arrow) keys to browse