जिसका रुतबा बढ़ता है, वही रास्ते से हटा दिया जाता है!
जरा आंकड़ों पर गौर कीजिए। कुण्डा विधानसभा क्षेत्र में करीब 85 हजार यादव मतदाताओं की संख्या है, जो इस क्षेत्र में किसी एक जाति का सबसे बड़ा वोट बैंक है। राजपूत मतदाताओं की संख्या मात्र 10 हजार है। साफ जाहिर है कि सामन्तवादी प्रथा को अब तक कायम रखते चले आए कुण्डा के युवराज को यह लगने लगा था कि यदि इन पर अपना प्रभाव नहीं बनाया तो उनकी राजनीतिक जमीन हाथ से निकल जायेगी।
रघुराज प्रताप सिंह ने जब 1993 में सियासत में कदम रखा, उस वक्त कुण्डा क्षेत्र पर ब्राह्ममणों का वर्चस्व कायम था। उस वक्त भी राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह खासे चर्चा में थे। यही वह दौर था जब एक के बाद एक क्षेत्र के 36 ब्राह्नमणों की हत्याएं हुईं। हालांकि लिाखित रूप से कुण्डा राजघराने से जुडे़ लोगों का नाम दस्तावेजों के साथ सामने नहीं आया लेकिन कुण्डा ही नहीं बल्कि पूरे प्रतापगढ़ में इस बात की चर्चा थी कि राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए ही हत्याओं को अंजाम दिया।
कुण्डा विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटों की संख्या भी कुछ कम नही है। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 45 हजार के आस-पास है। यादव और ब्राहम्ण के बाद मुस्लिम मतदाता भी उनके लिए सबसे बड़ी समस्या थे। लेकिन स्थानीय लोगों का ये भी कहना है कि मुस्लिम वर्ग भी राजा भैया के कहर से बच नहीं पाया। एक वक्त था जब यादवों की तरह यहां मुस्लिमों को भी निशाना बनाने का दौर चल पड़ा था। इनमें से कुछ मामले अभी भी न्यायपालिका में चल रहे हैं।
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