“बात उस वक़्त की है जब मैं हिंदुस्तान यूनिलीवर में काम करता था। सुबह 9 से शाम 5 बजे की नौकरी का कॉन्सेप्ट मेरे लिए थोड़ा ज़्यादा ही पेंचिदा था। कंपनी में कुछ खराबी नहीं थी, लेकिन वहां की नीरसता से मैं काफ़ी घृणा करता था। मैं अंदर से उस काम से खुश नहीं था। एक दिन मैं सुबह उठ गया, पर अंदर से नौकरी पर जाने की इच्छा नहीं हुई। मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला ले लिया। पर आगे के लिए मेरे पास कोई योजना नहीं थी कि नौकरी छोड़ने के बाद अब आगे क्या करना है लेकिन हां, इतना मैं ज़रूर जानता था कि मेरे अंदर नये लोगों से मिलने, फ़ोटोग्राफी, स्केचिंग करने का जुनून है। मैं ये सब करने के लिए काफ़ी उत्साहित रहता था। मैं किसी एक स्थान तक सीमित नहीं रहना चाहता था। मैं किसी के नियंत्रण में काम नहीं करना चाहता था। मैं आज़ाद रहना चाहता था। इसीलिए मैंने कुछ महीने बाद एक ऑटो रिक्शा खरीदा क्योंकि मैं जानता था कि इस तरह से मैं नए-नए लोगों से रोज मिल पाऊंगा और अपने भीतर की रचनात्मकता को एक नया आयाम देने के लिए भी समय निकाल पाऊंगा। ऐसा नहीं है कि मैं काम नहीं करना चाहता था। उस वक़्त भी मैं काफ़ी ज़्यादा हार्डवर्क करता था। कभी-कभी तो मैंने 12 घंटे से ज़्यादा भी काम किया है पर इस काम में मुझे मज़ा आता था।”
“मैं इतना काम करके भी बोर नहीं होता था, बल्कि रोमांचित रहता था। इस दौरान मैं मुंबई में बहुत से नए लोगों से मिला हूं और स्टूडियो से मैंने फ़ोटोग्राफी भी सीखी है। आज से 40 साल पहले भले ही रिक्शा चलाना एक छोटा पेशा रहा हो, लेकिन मेरे लिए दुनिया का सबसे अच्छा काम कल भी था और आज भी है। मैंने अपने सपनों और जुनून को कई तरह से साकार किया है। मैं अपनी सवारियों की फोटो खींचता, मैं उनके बारे में लिखता और पेंट करता था।
मैं अपने फ़ोटोग्राफी के लिए लंदन, अफ्रीका और दुबई सहित सारी दुनिया की यात्रा की है। जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं क्या करता हूं। तो मैं गर्व से कहता हूं कि मैं मुंबई में रिक्शा चलाता हूं। मैंने इसी दौरान अपना एमएससी भी पूरा किया और अब बेधड़क अंग्रेजी बोलता हूं। लोग अकसर मुझसे पूछते हैं कि मैं अभी तक क्यों ऑटो चलाता हूं, तो मेरा बस एक ही जवाब होता है- खुशी एक ऐसी अनमोल चीज़ है, जिसे पैसों से नहीं खरीदा जा सकता। इस दुनिया में जो इंसान खुश होता है, वही सबसे धनी इंसान होता है।”