आज 23 मार्च है और आज के ही दिन 1931 में भगत सिंह, सुखबीर और राजगुरू को फांसी दी गयी थी। केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी ।
सजा की तारीख 24 मार्च तय की गयी थी। लेकिन देश भर में व्यापत आक्रोश से डर कर अंग्रेज सरकार ने तय तारीख से पहले ही भगत सिंह, राजगुरू और सुखबीर को फांसी दे दी। भगत सिंह, राजगुरू और सुखबीर को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी थी। अंतिम बार जब तीनों से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तब तीनों ने एक साथ जवाब दिया, हम एक दूसरे से गले मिलना चाहते हैं।
आजादी की मशाल जलाने वाले भगत सिंह के लिए आजादी ही जिंदगी और आजादी की जिंदगी की मंजिल थी। उनका जन्म 28 सितंबर 1907 को तत्कालीन पंजाब में हुआ था।
क्यों फेंका था असेम्बली में बम ?
8 अगस्त, 1929 को उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली स्थित असैंबली हाल में जनता विरोधी बिलों ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ एवं ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ के विरोध में 2 बम धमाके किए और सरकार विरोधी पर्चे बांटे।
अपने फैसले पर भगत सिंह ने कहा..
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है,” प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियाँ के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गम्भीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ’ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘औद्योगिक विवाद’ के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
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