यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 1995 के इसके फैसले पर सवाल उठाये गए थे और कहा गया था कि ‘‘हिन्दुत्व, हिन्दूवाद’’ के नाम पर वोट किसी उम्मीदवार को पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं करता और तब से शीर्ष अदालत में तीन चुनावी याचिकाएं इस विषय पर लंबित हैं। शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1995 में व्यवस्था दी थी कि ‘‘हिन्दुत्व, हिन्दूवाद उपमहाद्वीप में लोगों की जीवनशैली है और यह मनोवृत्ति है।’’
यह फैसला मनोहर जोशी बनाम एनबी पाटिल मामले में सुनाया गया जिसे न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने लिखा था, जिसमें पाया गया कि जोशी का बयान कि ‘‘महाराष्ट्र में पहला हिन्दू राज्य स्थापित होगा’’, धर्म के आधार पर अपील के लायक नहीं है।
यह टिप्पणी जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123 की उपधारा तीन में बताए गए भ्रष्ट क्रियाकलापों के दायरे के संबंध में सवालों से निपटते हुए की गई थी।
30 जनवरी 2014 को इस कानून की धारा 123 की उपधारा तीन की व्याख्या का मुद्दा पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने आया था, जिसने इसे जांच के लिए सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजा।
सात न्यायाधीशों की पीठ भाजपा नेता अभिराम सिंह द्वारा 1992 में दायर अपील पर गौर कर रही है जिनका बंबई हाई कोर्ट ने 1991 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन निरस्त कर दिया गया था।