कानपुर देहात के पास हुए रेल हादसे से एक बार फिर भारतीय रेल के सिस्टम पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। सवाल सबसे बड़ा ये है कि हर साल महंगी होती जा रही रेल यात्रा के बावजूद क्यों नहीं है लोगों की सुरक्षा की गारंटी। भारत में हाईस्पीड और बुलेट ट्रेन चलाने के दावे तो किए जाते हैं लेकिन इस हाल में भला कैसे पूरा होगा रेलवे के आधुनिक होने का सपना। कहीं ये सपना सपना ही ना रह जाए, ये भी एक बड़ा सवाल है।
इतना तो तय है कि इस हादसे ने सिस्टम की कलई खोलकर रख दी। सीना ठोंककर जो लोग देश में बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे हैं सवाल ये है कि इस हाल में ये सपना भला कैसे साकार हो पाएगा? आखिर कब और कैसे लोग ट्रेन में सुरक्षित सफर की उम्मीद कर पाएंगे? आखिर कब और कैसे भारतीय रेलवे अंदर की खामियों को दूर करने और यात्रियों को सुरक्षित यात्रा देने में कारगर साबित हो पाएगा। सवाल कई हैं लेकिन अफसोस कि इन सवालों को जवाब ना तो भारतीय रेलवे के पास है और ना ही सरकार के पास।
यूं तो हर देश में छोड़ी बड़ी रेल घटनाएं होती रहती हैं लेकिन लगातार रेल हादसों में जान गंवाने वाले मृतकों की सूची देखकर लगता है कि बहुत जल्द इस मामले में हमारे देश पहले नंबर पर आ जाएगा। ज्यादातर ट्रेन दुर्घटनाएं में 86 फीसदी हादसे मानवीय भूलों की वजह से होते हैं। लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल सिस्टम होने के बावजूद भारतीय रेल अब भी ब्रिटिश काल के इंफ्रास्टक्चर पर चल रही है। जिस हिसाब से पटरियों पर रेलवे ट्रैफिक का दबाव बढ़ रहा है, उस हिसाब से इंफ्रास्टक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है। एक ओर तो सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, दूसरी ओर मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को हादसों से बचाने में सरकार नाकाम दिख रही है। रेलवे के सामने सेफ्टी एक बड़ा मसला बना हुआ है। सिग्नलिंग सिस्टम में चूक और एंटी कॉलीजन डिवाइसेज की कमी से भी आए दिन हादसे होते रहते हैं।
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