महंगी होती ट्रेन, बढ़ते रेल हादसे… कैसे पूरा होगा बुलेट ट्रेन का सपना? आखिरी सफर का जिम्मेदार कौन?

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कागजों पर ही रह जाती हैं सिफारिशें
वर्ष 1998 में बनी जस्टिस एच आर खन्ना कमेटी ने सेफ्टी को लेकर तमाम सिफारिशें की थीं। ये सिफारिशें रेलवे ने मान तो ली हैं लेकिन ये अभी कागजों पर ही दिखती हैं, जमीनी तौर पर इन्हें लागू किया जाना बाकी है। कमेटी ने रेलवे के डिब्बों के बीच होने वाले घर्षण में सुधार के लिए अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों से तालमेल कर जरूरी ऊपाय किए जाने की सलाह दी थी। मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन को प्रायरिटी पर रखने जाने की सलाह दी गई थी लेकिन अब भी यह मसला ‘लो प्रायरिटी’ पर है। रेलवे क्रॉसिंग पर सिग्नल की व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई खासकर देश के 23,000 मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर। डिजैस्टर ट्रेनिंग सेल बनाए जाने की बात भी खन्ना कमेटी ने की थी, लेकिन आपदा प्रबंधन का स्तर अब भी उस स्तर पर नहीं है। सबसे जरूरी सिफारिश यह की गई थी कि रेल हादसों के बाद होने वाली जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए ताकि मुसाफिरों के भीतर भरोसा जगाया जा सके लेकिन इस सिफारिश को तो अभी तक माना ही नहीं गया है।

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