नई दिल्ली। दो दशक पुराने ‘हिन्दुत्व’ संबंधी फैसले की जांच कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार(19 अक्टूबर) को पूछा कि किसी खास पार्टी या उम्मीदवार के लिए मतदाताओं से वोट मांगने पर चुनाव नहीं लड़ रहे आध्यात्मिक नेताओं या धार्मिक गुरूओं को चुनाव कानून के तहत ‘‘भ्रष्ट क्रियकलापों’’ के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है या नहीं।
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पूछा कि जो व्यक्ति जो न तो खुद चुनाव लड़ा और ना ही विजयी उम्मीदवार बना, उसके खिलाफ कैसे जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत कथित रूप से भ्रष्ट क्रियाकलाप अपनाने का मामला चल सकता है।
अदालत इस कानून की धारा 123 (3) के ‘‘दायरे’’ की जांच कर रहा है जो ‘‘भ्रष्ट क्रियाकलापों’’ वाली चुनावी कदाचार से संबंधित है। अभिराम सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दतार ने कानून की इस धारा का जिक्र करते हुए कहा कि भ्रष्ट क्रियाकलाप केवल तब साबित हो सकते हैं जब ‘‘या तो उम्मीदवार या उनका एजेंट’’ धर्म के नाम पर वोट मांगे।
मुंबई की सांताक्रूज सीट से भाजपा की टिकट पर 1990 में सिंह का विधायक के रूप में निर्वाचन हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। उन्होंने पीठ से कहा कि अगर कोई अन्य व्यक्ति जैसे कि इस मामले में दिवंगत बाल ठाकरे और दिवंगत प्रमोद महाजन इस कानून में दिये गये इन आधारों पर वोट मांगते हैं तो उम्मीदवार की ‘‘रजामंदी’’ ली जानी चाहिए।
इस पीठ में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए सोब्दे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव शामिल हैं।