नई दिल्ली। अश्लील डांस को रोकने और डांसरों पर नोट उछालने पर पाबंदी संबंधी महाराष्ट्र के नए कानून के एक प्रावधान का मंगलवार(30 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने समर्थन किया और कहा कि बार में डांस के वक्त पैसे उड़ाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह महिलाओं के गौरव, सभ्यता और शिष्टाचार के खिलाफ है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पैसे उड़ाने से उन्हें(महिलाओं को) अच्छा लगेगा या बुरा।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने हालांकि ‘इंडियन होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन’ सहित कई अन्य द्वारा दायर कई याचिकाओं पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किए। इन याचिकाओं में महाराष्ट्र के होटलों, रेस्तरां और बार रूम में अश्लील नृत्य रोकथाम एवं महिला गरिमा संरक्षण संबंधी कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
महिला डांसरों पर नोट उछालने को टिप के रूप में स्वीकार करने से इंकार करते हुए पीठ ने कहा कि ‘‘यह प्रावधान महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करता है। यह शालीनता एवं संस्कृति को आगे बढाता है।’’ पीठ ने सिनेमाघरों में धन फेंकने और बारों में महिला डांसरों पर नोट उछालने के बीच भेद बताया।
अदालत ने कहा कि ‘‘यह सिल्वर स्क्रीन नहीं है जहां आप धन फेंकें। वे कलाकार हैं और उनसे कुछ गरिमा जुड़ी हुई है।’’ संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने कहा कि कानून गायकों को वित्तीय लाभ की अनुमति देता है, लेकिन डांसरों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
भूषण ने दलील दी कि ‘‘डांसरों को उनकी प्रस्तुति के लिए नोट देना टिप देने जैसा है। गायकों के लिए इसकी अनुमति है और डांसरों के लिए नहीं।’’ शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से छह हफ्तों के भीतर इन याचिकाओं पर जवाब देने को कहा। अदालत ने राज्य को कुछ दिशानिर्देशों के खिलाफ अंतरिम राहत की प्रार्थना पर जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, विभिन्न होटलों और डांस बारों के वकील ने डांस वाले इलाके में सीसीटीवी कैमरे लगाने सहित नये कानून के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई। भूषण ने उस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया, जिसमें कहा गया कि बार में उस जगह पर शराब नहीं परोसी जाएगी, जहां डांसरों का कार्यक्रम होगा। उन्होंने उस उपबंध पर भी आपत्ति जताई जिसमें बार के लिए डांसरों को नौकरी पर रखना जरूरी बनाया गया। उन्होंने कहा कि कलाकार को कार्यक्रम प्रस्तुत करने की जगह चुनने से रोका नहीं जा सकता।
भूषण ने कहा कि ‘‘किसी महिला को नौकरी पर रहने के लिए मजबूर क्यों किया जाए? वे पेशेवर हैं। वे कलाकार हैं और अपनी पसंद की किसी भी जगह पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकती हैं।’’