सीबीआई सूत्रों ने ये भी बताया कि जब यह मामला सीबीआई के पास आया तो यह संदेह उपजा कि लगभग 96 मामलों में उम्मीदवार और बिचौलिए झूठ बोल रहे हैं जिसके बाद उनका लाई डिटेक्टर परीक्षण किया गया। जिन उम्मीदवारों और बिचौलियों ने यह परीक्षण करवाने से इनकार किया उनका साइकोलॉजिकल असेसमेंट टेस्ट (पीएटी) करवाया गया क्योंकि इस किस्म के परीक्षण के लिए उनकी या अदालत की मंजूरी लेना जरूरी नहीं होता है।
बड़ी संख्या में फोटोग्राफरों को लगाकर ऑनलाइन फॉर्म में तस्वीरों से छेड़छाड़ की गई। यह काम इस तरह से किया गया कि उम्मीदवारों और उनके बदले परीक्षा देने वाले छात्रों का चेहरा मिलता-जुलता नजर आए। जब घोटाले का भंडाफोड़ हो गया, तो छात्रों से कहा गया कि वे ऐसे गरीब लोगों का नाम बिचौलिये के तौर पर बता दें, जिनकी मौत हो चुकी है।
इसका मकसद असली बिचौलियों और डमी परीक्षार्थियों को पुलिस से बचाना था। जब सीबीआइ ने जांच का काम अपने हाथ में लिया तो पता चला कि लगभग 96 मामलों में फर्जी बिचौलियों का नाम लिखा दिया गया है।