6 साल में TCS को 3 गुना लाभ दिलाने वाले चंद्रशेखरन हैं टाटा ग्रुप के नए चेयरमैन, पढ़िए इनकी 7 चुनौतियां

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ये होंगी चंद्रशेखरन की 7 चुनौतियां
1. टाटा ग्रुप के लिए सोने की खदान TCS को टॉप पर बनाए रखना
– जेआरडी टाटा और एफसी कोहली ने 1968 में TCS की नींव रखी थी। लेकिन कंपनी ने सबसे देरी से अगस्त 2004 में शेयर बाजार में एंट्री ली। तब TCS के चेयरमैन रामादुराई थे।
– 5 साल बाद रतन टाटा के सामने चुनौती थी कि रामादुराई का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाए। तब रतन टाटा ने चंद्रशेखरन पर भरोसा जताया।
– 2009 में चंद्रशेखरन के TCS चीफ बनने के बाद से देश की यह सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा सन्स के लिए सोने की खदान बनी हुई है।
– शेयर बाजार से इस कंपनी ने अथाह पैसा खींचा। आज यह प्राइवेट सेक्टर में देश की सबसे बड़ी इम्प्लॉयर है। कंपनी में 353,000 कंसल्टेंट्स हैं।
– टाटा ग्रुप की टॉप-10 कंपनियों की टोटल मार्केट कैप अगर 7.53 लाख करोड़ है, तो इसमें अकेली TCS की वर्थ 4.60 लाख करोड़ है।
– 2010 में टीसीएस की कमाई 30 हजार करोड़ रुपए थी। चंद्रशेखरन ने इसे 2016 तक तीन गुना बढ़ाकर 1.09 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया।
2. TCS ही सब कुछ नहीं
– रतन टाटा को लगता था कि साइरस मिस्त्री का पूरा फोकस टाटा कंसल्टेंसी सर्विस यानी टीसीएस पर है। जबकि ये कंपनी पहले ही प्रॉफिट में है और सबसे ज्यादा मजबूत है। लेकिन साइरस उन कंपनियां के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे जो दिक्कतों का सामना कर रही हैं।
– चंद्रशेखरन को ध्यान रखना होगा कि वे मिस्त्री जैसी गलती ना करें या वैसा परसेप्शन ना बनने दें।
– टाटा ग्रुप की टॉप-10 कंपनियों के मार्केट कैप से TCS को हटा दें तो बाकी कंपनियों का मार्केट कैप भी सिर्फ 3 लाख करोड़ है।
– टाटा ग्रुप के ऑटोमोबाइल से लेकर रिटेल तक और पावर प्लान्ट से सॉफ्टवेयर तक, करीब 100 बिजनेस हैं। इनमें से कई कंपनियां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं।
– फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में ग्रुप की 27 लिस्टेड कंपनियों में से 9 कंपनियां नुकसान में चल रही हैं। 2014-15 में टाटा ग्रुप का टर्नओवर 108 अरब डॉलर था, जो 2015-16 में घटकर 103 अरब डॉलर रह गया।
3. कैसे बनाएंगे अपनी जिम्मेदारी, टाटा सन्स और रतन टाटा के बीच बैलेंस?
– साइरस मिस्त्री का टाटा एंड सन्स के साथ एक्सपीरियंस बुरा रहा। चंद्रशेखरन को भी बहुत ज्यादा आजादी नहीं मिलेगी। इन्हें टाटा सन्स और रतन टाटा, दोनों की बात सुननी होगी।
– टाटा की 15 से 20% फ्लैगशिप कंपनियां ही मुनाफा कमा रही हैं। चंद्रशेखरन का अब तक फोकस टीसीएस पर था। अब फाेकस डाइवर्ट होगा। कई कंपनियों में पहले से चेयरमैन हैं। इस वजह से चंद्रशेखरन को तुरंत काम की आजादी नहीं मिलेगी।
4. टाटा ग्रुप की खासियत बनाए रखने की चुनौती
– मिस्त्री-टाटा विवाद से जिस ब्रांड लॉयल्टी के सामने खतरा पैदा हुआ है, उसे दोबारा कायम करना चंद्रशेखरन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
– टाटा ग्रुप दुनिया में दो चीजों के लिए जाना चाहता है। इथिकल-मॉरल बिजनेस और सीएसआर। टाटा जो कमाते हैं, उसका बड़ा हिस्सा ट्रस्टों के जरिए सोसाइटी को लौटा देते हैं।
– टाटा समूह ने कभी उस कारोबार में एंट्री नही ली जो सोसाइटी में कॉन्ट्रोवर्शियल है, जैसे लिकर या टोबैको बिजनेस।
– जमशेदजी टाटा से लेकर रतन टाटा तक टाटा समूह की जिसने भी लीडरशिप संभाली, उन्होंने ग्रुप की इमेज को सबसे ऊपर रखकर टाटा समूह को लोकल से ग्लोबल बनाया।
5. कानूनी मुकदमों से निपटना होगा
– इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स टाटा ग्रुप से नाराज हैं। चेयरमैन की पोस्ट से बर्खास्त किए जाने से नाराज साइरस मिस्त्री ने भी कई केस ग्रुप पर लगा रखे हैं।
– इससे पहले, इंटरनेशनल कोर्ट खासकर यूएस में टाटा समूह की खूब फजीहत हो चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा काबिल-ए-गौर है यूएस ग्रैंड ज्यूरी की तरफ से समूह की सबसे कमाऊ कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस और टाटा अमेरिका इंटरनेशनल कॉरपोरेशन पर लगा फाइन।
– दोनों कंपनियों पर ज्यूरी ने एक ट्रेड सीक्रेट मुकदमे के तहत 94 करोड़ डॉलर (करीब 6000 करोड़ रुपए) का फाइन लगाया था।
– टाटा ग्रुप जापान की डोकोमो से भी टेलिकॉम ज्वाइंटर वेंचर के बंटवारे को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। डोकोमो टाटा टेलि सर्विसेस से अलग हो चुकी है।
– डोकोमो ने टाटा से 1.2 बिलियन डॉलर का हर्जाना मांगा। ऐसा नहीं होने पर टाटा की ब्रिटिश प्रॉपर्टीज पर मालिकाना हक दिए जाने की मांग की।
6. कोरस और जगुआर का क्या करेंगे?
– कोरस और जगुआर घाटे का सौदा साबित हुईं। ये दोनों रतन टाटा की प्रेस्टिजियस डील थीं। मिस्त्री इन्हीं के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे।
– चंद्रशेखर सामने यह भी चुनौती होगी कि रतन टाटा के इन दो प्रोजेक्ट के चलते हुए घाटे का असर टाटा ग्रुप पर अब आगे नहीं हो।
7. शेयर होल्डर्स में भरोसा कायम करना हाेगा
– चंद्रशेखरन को टाटा ग्रुप की कंपनियों को इन्वेस्टर्स की डार्लिंग कंपनी बनाना होगा। इन्वेस्टर सालाना उतना डिविडेंड तो चाहता ही है, जितना बैंक में पैसे रखने से मिलता है। अगर एप्रिसिएशन मिले, तो वो खुश हो जाता है।
– टाटा मोटर्स के शेयरहोल्डर्स ने अगस्त 2016 में शिकायत की थी कि उन्हें एक शेयर का सिर्फ 20 पैसा डिविडेंड दिया गया।
– तब मिस्त्री ने इस कदम को सही ठहराया था। उन्होंने कहा था कि अाप सभी से जुटाई पूंजी नए प्रोडक्ट्स में लगा रहे हैं। इस लंबे सफर में कमजोर दिल वालों को जगह नहीं है।
– इसके बाद बीते अक्टूबर में मिस्त्री को हटाया गया और रतन टाटा इंटरिम चेयरमैन बनाए गए। – चंद्रशेखरन के सामने अब शेयर होल्डर्स को यह मैसेज देने की चुनौती होगी कि टाटा ग्रुप में अब सब कुछ ठीक है और वह दिल खोलकर डिविडेंड दे सकता है।
दैनिक भास्कर के सौजन्य से –
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