नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक.. अगर भारत पाकिस्तान से सिंधु नदी का करार खत्म करता है तो चीन पाकिस्तान के हक में आकर भारत के खिलाफ सख्त कदम उठा सकता है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर ऊपरी तट नदी राज्य की स्थिति में है। ऐसी स्थिति में चीन सैद्धांतिक रूप से कभी भी हाइड्रोलॉजिकल सूचनाएं रोकने के अलावा नीचे की तरफ नदी के बहाव में अवरोध खड़ा कर सकता है। चीन को लेकर ज्यादा डर इसलिए भी है क्योंकि पहले भी यह मुल्क अपने हाइड्रोप्रॉजेक्ट्स की जानकारी भारत के साथ साझा करने से इनकार कर चुका है। जब कभी जानकारी दी भी है, तो गलत दी है।
1960 में वर्ल्ड बैंक ने सिंधु जल समझौते में मध्यस्थता की थी। इस तरह से भारत, पाक के अलावा इस समझौते का एक तीसरा पक्ष भी है। ऐसी स्थिति में तीनों पक्षों में से किसी के द्वारा एकतरफा इस समझौते को खत्म करना काफी मुश्किल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सिंधु जल समझौते की वजह से ही भारत पाकिस्तान से दूसरी नदी प्रॉजेक्टस पर बातचीत कर रहा है।
इसकी मदद से भारत को जम्मू-कश्मीर में बगलिहार डैम के लिए हरी झंडी मिल चुकी है। इसके अलावा इसी के आधार पर किशनगंगा प्रॉजेक्ट में भारत को पॉवर जेनरेशन के लिए पानी डायवर्ट करने का अधिकार मिला था। यह मामला हेग की इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चला था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह सबकुछ सिंधु जल समझौता के सफल क्रियान्वयन की वजह से ही संभव हो पाया।