देश में जहां एक तरफ हिंदू-मुस्लिमों के बीच हिंसा की खबरें सामने आती हैं। वहीं कुछ घटनाएं देश में भाईचारे की मिसाल बनकर दर्ज हो जाती हैं। ऐसे खबरें दिल को ना सिर्फ खुश करती हैं बल्कि हमें देश की एकता और अखंडता का एहसास भी कराती हैं। कहते हैं भारत की संस्कृति दुनिया भर में मशहूर हैं। जब इसी संस्कृति को अलग-अलग धर्म के लोग मिलजुल कर निभाते हैं तब जाकर देश की एक पहचान बनाते हैं।
ऐसी ही एक मिसाल अहमदाबाद में देखने को मिल रही है, जहां मुस्लिम रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले दहन के लिए बनाते हैं, वहीं हिंदू ताजियों का निर्माण करते हैं।
दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक आगरा के किरावाली में रहने वाले 37 साल के शराफत अली फारुकी अपने पिता अशरफ अली की रावण का पुतला बनाने में मदद करते थे। वह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशालकाय पुतले बनाने के लिए कई शहरों में जाया करते थे।
शराफत बताते हैं कि उन्हें रामलीला देखना भी बहुत भाता था और आज भी उन्हें रामायण की कहानी मुंहजुबानी याद है। मुस्लिम होने के बावजूद, शराफत दशहरे के दौरान पारंपरिक तौर पर जलाए जाने वाले पुतले बनाते हैं। यह उनका पुश्तैनी काम है, जो वह चार पीढ़ियों से करते चले आ रहे हैं।
वह नियमित तौर पर अहमदाबाद आते-जाते रहते हैं। पिछले एक दशक से रामोल इलाके में पुतले बनाने का उनका एक स्टूडियो है। इस साल वह 15 से ज्यादा रावण के पुतले बना रहे हैं। वह गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के कई शहरों में पुतले बनाने के लिए जा चुके हैं।
उनका कहना है कि रावण का नाश अच्छाई की जीत है। जिंदगी के बारे में सीख देने वाली सारी कहानियां मुझे अच्छी लगती हैं। जब मैंने पुतले बनाने का काम शुरू किया, तो यह कारोबार ही नहीं, मेरे लिए एक जिम्मेदारी भी थी। मैं चाहता था कि हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों को सबसे बेहतर तरीके से मनाया जाए।
अगले स्लाइड में वीडियो में देखिए – कैसे बनते हैं रावण के पुतले