आतंकी सरगना मसूद अज़हर की ललकार, भारत को सिखाओ ऐसा सबक की भूल जाए 1971 की हार का गम

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आतंकी मसूद अजहर

जैश-ए-मोहम्‍मद के कमांडर मौलाना मसूद अज़हर ने अपनी जिहादी गुटों से कश्मीर में अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए कहा है। जैश-ए-मोहम्मद की साप्ताहिक पत्रिका अल-क़लम में मौलाना अज़हर ने लोगों से अपील कर लिखा है कि, ‘निर्णायक फैसला लेने में दिखाई गई देरी से पाकिस्तान कश्मीर में ऐतिहासिक मौका खो सकता है।’ अजहर की ये अपील ऐसे समय में आई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव का महौल चल रहा है।

आपको बता दे, भारत के पठानकोट में हुए आतंकी हमले के लिए जैश-ए-मोहम्मद ही जिम्मेदार था। भारत हमेशा से पाकिस्तान में रह रहे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता रहा है।

जनसत्ता की खबर के अनुसार, पत्रिका के पहले पन्ने पर अज़हर ने लिखा है, ‘अगर पाकिस्तान सरकार थोड़ी हिम्मत दिखाए तो कश्मीर की मुश्किल और पानी की समस्या एक बार में हमेशा के लिए हल हो जाएंगे। कुछ और नहीं तो (पाकिस्तानी) सरकार को मुजाहिद्दीनों के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए। फिर अल्लाह की मर्जी रही तो 1971 की सभी कड़वी यादें 2016 की फतह की खुशी में गायब हो जाएंगी।’

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मसूद अज़हर ने पाकिस्तानी सरकार को संबोधित करते हुए लिखा है कि, ‘1990 से जारी जिहादी नीति से पाकिस्तान को रणनीतिक फायदा हुआ है। अज़हर ने आगे लिखा है कि भारत अखण्ड भारत बनाना चाहता है लेकिन जिहादियों की मौजूदगी के कारण उसके मंसूबे पूरे नहीं हो रहे हैं क्योंकि जिहादियों ने उसके हर अंग को घायल कर दिया है। भारत की सैन्य क्षमता की पोल पठानकोट और उरी में खुल चुकी है।

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अज़हर ने लिखा है, ‘भारत इस बार पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है। कश्मीर के हालत को देखते हुए ये काम पाकिस्तान को करना चाहिए था। कश्मीर हमारे लिए जीवन-मरण का सवाल है इसलिए दक्षेस सम्मेलन और नियंत्रण रेखा पर संघर्ष-विराम हमें रद्द करना चाहिए था। पिछले 90 दिनों में कितने मुस्लिम शहीद हो गए और कितने घायल हो गए?’

अज़हर ने लिखा है, ‘कश्मीर में जिहाद से पहले और बाद के भारत के बारे में सोचें। आपको नाटकीय अंतर दिखेगा। इस दौर में मैंने अपनी आंखों से भारत को सांप से केचुए में बदलते देखा है।’

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अज़हर ने आगे अपने लेख में जैश-ए-मोहम्मद के फैलाव के बारे में लिखा है, ‘जब हमने जिहाद शुरू किया था तो कश्मीर में हमारी कोई शाखा नहीं थी। न ही सीरिया और इराक में कोई रोशनी की किरण थी। केवल अफगानिस्तान और फलस्तीन में दो मोर्च थे। उनमें से एक सक्रिय था और दूसरा बंद था। हमने जिहाद को एक अंगारे से सूरज बनते देखा है, एक छोटे से चहबच्चे से नदी में बदलते देखा है और अब ये समंदर बनने वाला है।