उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी से देश में अविश्वास का माहौल उत्पन्न हो गया है। विमुद्रीकरण उल्टा आफत पैदा कर गया है। कालेधन वाले सरकार से बहुत ज्यादा शातिर और पहुंच वाले हैं।
कीर्ति ने आरोप लगाया कि यदि सरकार की मंशा स्पष्ट रहती तो नोटबंदी की पूर्व तैयारी अवश्य होती। उनके नीतिकारों को व्यवहारिकता का ज्ञान नहीं है। आम लोगों को 500 और 1,000 के बजाय 2,000 रुपये के नए नोट छापे जाने का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। सारे अनुमान अवास्तविकता पर आधारित हैं। आम लोगों का मानना है कि इस पूरे प्रकारण से कॉरपोरेट घराने को लाभ मिलने की संभावना है।
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि 8 नवंबर के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में छापेमारी शुरू की गई और जहां-तहां कालाधन पकड़ में आ रहा है। यही कार्य पहले व्यापक पैमाने पर न होना वित्त मंत्रालय की अक्षमता का परिचायक है।