दिल्ली: कश्मीर देश का अभिन्न हिस्सा। जब से हिजबुल कमांडर बुरहानवानी का एनकाउंटर हुआ है तब से कश्मीर कुछ ज्यादा ही सुलग है। नए युवा पाकिस्तान के बहकाबे में आकर चरमपंथी संगठन ज्वाइन कर रहे हैं और भारत के खिलाफ साजिशों में जोर शोर से हिस्सा ले रहे हैं।
करीब 3 महीने तक कर्फ्यू से घाटी घिरा रहा। पत्थरबाजों का हुजूम लगातार सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करता रहता है। हालांकि नोटबंदी ने कुछ हद तक पत्थरबाजी पर लगाम लगा दिया है।
बीबीसी के अनुसार कश्मीर में बेजबिहाड़ा के एक गांव में पिछले महीने हज़ारों लोग बासित रसूल डार के जनाज़े में शरीक हुए। बासित इंजीनियरिंग का छात्र था।
अभी ढाई महीने पहले ही उसने मिलिटेंसी ज्वाइन की थी। बासित के गांव में जगह-जगह दीवारों पर उनकी तस्वीरें प्रदर्शित की गई थीं। वे एक कम बोलने वाले और पढ़ने लिखने वाले छात्र थे।
बासित की मौत सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में पिछले साल दिसंबर में हो गई थी।
पिता गुलाम रसूल डार अपने बेटे की मौत से निढाल हैं, “मैं संकट से गुजर रहा हूँ। पता ही नहीं चला, बहुत कम बातें करता था। ऐसा कुछ नहीं लगता था कि वह ऐसा कोई कदम उठा लेगा।”