भारत और जापान के बीच हुई ऐतिहासिक न्यूक्लियर डील की दीवार ‘टर्मिटेशन क्लॉज’ की नींव पर टिकी है। इसके मुताबिक अगर भारत न्यूक्लियर टेस्ट करता है तो जापान को समझौता रद्द करने का अधिकार होगा। सरकार ने भी साफ कर दिया है कि ये क्लॉज बाध्यकारी नहीं होगा। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या भारत सिर्फ इस समझौते को बचाने के लिए कोई न्यूक्लियर टेस्ट नहीं करेगा या फिर ये समझौता जल्द ही टूट जाएगा।
सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका और अन्य देशों के साथ हस्ताक्षरित किए गए इस प्रकार के समझौतों में भारत ने कोई अतिरिक्त टिप्पणी नहीं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे की उपस्थिति में शुक्रवार को टोक्यो में हस्ताक्षरित हुए परमाणु सहयोग समझौते में दृष्टिकोण और समझ के बारे में एक टिप्पणी है। इसमें जापानी पक्ष ने भारत की सितंबर 2008 की उस प्रतिबद्धता का हवाला दिया है। इसमें परमाणु परीक्षण पर एकपक्षीय रोक की घोषणा की गई थी। इसमें कहा गया कि यदि इस प्रतिबद्धता का उल्लंघन किया गया तो समझौता रद्द हो जाएगा।
भारत सरकार का कहना है कि यह महज दोनों पक्षों के विचारों को दर्ज करना है। सूत्रों ने बताया कि जिन अन्य एनसीए (परमाणु सहयोग समझौतों) पर समझौते किए गए हैं उनमें भी समाप्ति उपबंध है। इसमें अमेरिका (अनुच्छेद 14) शामिल है। बहरहाल वे परिस्थितियां जिनसे संभावित समाप्ति हो सकती है, उनको स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है। शमन कारकों पर चिंता की जानी चाहिए। यह टिप्पणी चंद मुद्दों पर वार्ताकारों के संबद्ध विचारों को महज दर्ज किया गया है। एनसीएस में यह ऐसी बात नहीं है जो बाध्यकारी हो।परमाणु हमले को झेलने वाला एकमात्र देश होने के कारण जापान की विशेष संवेदनशीलता है। लिहाजा यह महसूस किया गया कि उनके दृष्टिकोण को एक अलग टिप्पणी में शामिल किया जाए। यह टिप्पणी चंद मुद्दों पर वार्ताकारों के संबद्ध दृष्टिकोणों को दर्ज करना मात्र है।
एक दूसरे से अलग हैं जापान-अमेरिका से हुए करार
जापान से हुए करार में स्पष्ट है कि अगर समझौते के प्रावधान का उल्लंधन होता है तो उसे इसे टर्मिनेट करने का एकतरफा अधिकार होगा। इसमें बातचीत की भी जरूरत नहीं होगी।
वहीं अमेरिका से हुए करार में ये कहा गया है कि अगर समझौते का उल्लंधन हुआ तो दोनों देश इस पर बात करेेंगे। कोई भी देश इस करार को रद्द करने का एकतरफा फैसला नहीं लेगा।