बताया जा रहा है कि कश्मीर पर नकरात्मक मीडिया कवरेज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परेशान चल रहे थे। उन्हें लग रहा था कि उनके मंत्री पत्रकारों को सही तथ्य समझा नहीं पा रहे थे। इसके बाद चार वरिष्ठ मंत्रियों- राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू को मीडिया से बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह बैठक पूरी तरह से ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ होने थी, मतलब सूत्रों को लेकर कोई बात नहीं होनी थी। अगले दिन मीडिया में जो डाटा दिया गया, उसके आधार पर कश्मीर की रिपोर्ट प्रकाशित की और सूचना के लिए अनाम ‘सूत्रों’ का हवाला दिया। लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू राज छिपा नहीं सके और मीडिया से बात करने वाले मंत्रियों के नाम ट्वीट कर दिए। उन्होंने यह भी ट्वीट कर दिया कि बातचीत के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री से इस बारे में मुलाकात की। अपने सवा दो साल के अधिक के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार लगातार कश्मीर समस्या के समाधान की कोशिश कर रही है लेकिन अभी तक कोई राह निकलती नहीं दिख रही है। कश्मीर में भाजपा-पीडीपी के गठबंधन में भी दरार पड़ती नजर आ रही है।
8 जुलाई को हिज्बुल मुजाहिद्दीन के 24 उग्रवादी बुरहान वानी की एक मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी में शुरू हुई हिंसा में दो पुलिसकर्मियों समेत अब तक 75 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। दो हजार से अधिक लोग पैलेट गन इत्यादि से घायल हुए हैं। कश्मीर कुछ इलाकों में अभी भी कर्फ्यू हुआ है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि जितने शायद पिछले एक दशकों में कभी नहीं बिगड़े थे। पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सुझाए “इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत” के रास्ते से कश्मीर समस्या का हल निकालने की बात दोहराई लेकिन जब गिलानी ने भारतीय नेताओं के लिए अपने घर के दरवाजे नहीं खोले तो सोमवार (5 सितंबर) को गृह मंत्री राजनाथ ने कहा, “अलगाववादियों के व्यवहार ने दिखा दिया कि वे कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत में विश्वास नहीं करते हैं।” जाहिर है राजनाथ के बयान में सरकार की हताशा झलक रही थी।
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