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आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के मुताबिक जो पुराना स्टॉक था उसमें करीब 24 लाख करोड़ रुपये की करेंसी उपलब्ध थी। जिसमें 500-1000 रुपये के नोटों की कीमत 21 लाख करोड़ थी जिसकी वजह से लोगों की बहुत तकलीफ हुई। रद्दी नोटों के ऐवज़ में 2000 के नए छपे नोटों का मूल्य 4.95 लाख करोड़ था। यानी कहीं न कहीं लगभग डेढ़ महीने बाद भी अगर कतार छोटी नहीं हो रही तो उसकी बड़ी वजह बदइंतजामी भी है। आरटीआई से मिले आंकड़ों से साफ है कि अर्थव्यवस्था को लेकर इतना बड़ा कदम उठाने से पहले न तो पूरी स्थिति का आकलन किया गया और न ही समुचित उपाय।
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