कठिनाइयों और दुखों में बीता जीवन
कोटभर्री गांव में 18 घर हैं, उसमें रहने वाले परिवाराें में ज्यादातर मजदूर हैं। पिछले 50 साल से यहां रह रही कुंवर बाई ने तकरीबन 30 साल गरीबी में काटे। चेहरे पर झुर्रियां और हाथ में लाठी बस यही कुंवर के पास है। कुंवर की आखिरी कमाई उसका हौसला है।
कैसे शुरू हुई टॉयलेट बनवाने की मुहिम ?
कुंवर बाई के दो बेटे थे। उनमें से एक की मौत बचपन में हो गई और दूसरा 30 साल पहले चल बसा। घर की महिलाओं को घर की गाड़ी खींचनी पड़ी। कुंवर के मुताबिक इतने संघर्ष के दौर में सबसे बड़ा संघर्ष खुले में टॉयलेट के लिए जाना होता था। जब तक मजबूरी थी, तब तक चला। लेकिन उनकी बहू और उसके बाद नातिन के सामने यही मजबूरी आई तो वह देख नहीं पाईं। उन्होंने तय कर लिया कि टॉयलेट बनवाएंगी। कड़ा फैसला लेकर अपनी आधा दर्जन बकरियां बेच दीं। इससे मिले 22 हजार रुपए से गांव का पहला शौचालय अपने घर में बनवाया। फिर हर परिवार के पास पहुंची कि महिलाओं का मान बचाने टॉयलेट बनवाना चाहिए।
वीडियो में देखिए 105 साल की कुंवर बाई के हौसले की कहानी
वीडियो सौजन्य टाइम्स नाऊ