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याचिका में कहा गया कि नगा, गोंड, बैगा आदि जनजातियों में बहुविवाह का प्रचलन है। जबकि टोडा, रोडा, खासा, तियान, आदि जनजातियों में बहुपति विवाह प्रचलन है। साथ ही जनजातियों में तलाक की प्रक्रिया बेहद सरल है।
एक मामूली समारोह के तहत विभिन्न आधारों पर तलाक संभव है। साथ ही जनजाति समुदाय के लोग एक से अधिक महिला के साथ शादी कर सकते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम,1955 के तहत यह पाबंदी उन पर लागू नहीं होती।
साथ ही संगठन का कहना है कि समान नागरिक संहिता लागू करना राज्य का काम है न कि अदालत का। साथ ही यह भी कहा गया है कि संविधान में अनुसूचित जनजातियों को विशेष प्रावधान केतहत संरक्षण प्राप्त है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक और बहुविवाह आदि मसले पर सुनवाई कर रहा है। इसी दौरान समान नागरिक संहिता का मसला भी सामने आया है।
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