मुस्लिम संगठनों के बाद अब आदिवासी समुदायों ने भी सुप्रीम कोर्ट में समान नागरिक संहिता के विरोध में आवाज़ उठाई है। राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद नामक गैर सरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होने कहा है कि समान नागरिक संहिता को लेकर अगर अदालत कोई निर्देश देती है तो इससे उनकी संस्कृति, परंपरा और उनके समाज में प्रचलित बहुविवाह आदि प्रथा पर असर पड़ेगा। देश में करीब 11 करोड़ आदिवासी हैं।
संगठन ने समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए कहा है कि हम हिन्दू समुदाये के डरे में नहीं आते क्योंकि हिन्दू तो मूर्ति पूजा करते हैं जबकि हम प्रकर्ति की पूजा करते हैं। साथ ही हम शव को दफनाते हैं यहां तक की हमारे यहां शादी के रीति रिवाज़ भी हिंदुओं से बिलकुल अलग हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में संगठन ने कहा है कि अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है तो आदिवासी समुदाय की शादी के रीति-रिवाज, पूजा, अंतिम संस्कार सहित सदियों से चली आ रही प्रथा और प्रचलन खत्म हो जाएंगे।
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