निर्वाचन आयोग ने सरकार से की सिफारिश –  चुनाव से 48 घंटे पहले अखबार में राजनीतिक विज्ञापनों पर लगे रोक

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नई दिल्ली. अखबारों में राजनीतिक विज्ञापनों की भरमार से भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सरकार से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन की मांग की है। विधानसभा चुनाव से पहले समाचार पत्रों में राजनीतिक विज्ञापनों को प्रतिबंधित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने सरकार से कोई स्थायी कानून बनाने की गुहार लगाई है। एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने 27 मई को कानून सचिव जी नारायण राजू के साथ आयोजित एक बैठक में अनुरोध किया था कि प्रिंट मीडिया को भी जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 में शामिल किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत पहले प्रिंट में राजनीतिक विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया था। पिछले साल बिहार चुनाव के समय भाजपा ने कई हिन्दू अखबारों में ‘गाय’ संबंधित विज्ञापन दिए थे। जो सांप्रदायिकता और विभाजन को बढ़ावा देने वाले थे।

4 नवंबर 2015 को कई दैनिक समाचारों में छपे इन विज्ञापनों पर आरोप लगाया गया था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोगी दलों ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया था। तो वहीं इस मामले में चुनाव आयोग की सचिव स्तर की बैठाक में भी नितीश कुमार इस पर चुप्पी साधे रहे थे। आयोग ने प्रिंट मीडिया को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 में शामिल करने को कहा था। यह कानून वोटिंग खत्म होने से पहले 48 घंटों तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी, रेडियो और सबसे ज्यादा प्रचलित सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाता है।

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आपको बता दें कि इस प्रस्ताव को पहले 13 अप्रैल 2012 को चुनाव आयोग द्वारा रखा गया था साथ ही विधि आयोग ने भी इसका समर्थन किया था। लेकिन सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। निर्वाचन आयुक्तों नसीम जैदी, ए के जोति और ओ पी रावत ने बिहार, असम और पश्चिम बंगाल में हाल के चुनावों के संचालन में अपने अनुभवों और राजनीतिक विज्ञापनों के प्रसार प्रचार के कारण फैली हिंसा के आधार पर 27 मई को इस कानून को बनाए जाने के लिए प्रस्ताव दिया था।

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गौरतलब है कि आयोग ने विज्ञापनों के लिए “कोटा स्कीम’ का विरोध किया था। 2015 बिहार चुनाव के दौरान भाजपा, राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने दलितों, महादलित, ओबीसी और ईबीसी समुदाय के विज्ञापनों के लिए एक पूरा कोटा ख़रीदा था। जिसमे दलितों को टारगेट करने के लिए विज्ञापन दिए जाते थे। आयोग ने राजनीतिक पार्टियों की विज्ञापन के लिए पूरे एक साल या कुछ समय तक किसी समुदाय को टारगेट करके विज्ञापन देने की स्कीम पर आप्पति जताई थी। लेकिन चेतावनी के बावजूद भी पार्टियों ने इसे नजरअंदाज करके चार दैनिक समाचारपत्रों में गाय संबंधित विज्ञापन छपवाए थे।

अप्रेल 2015 में जैदी ने दूसरे मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में पदभार संभालते हुए मई में आयोग और कानून मंत्रालय के बीच बैठक आयोजित करवाई थी। इस बैठक को चुनाव सुधारों और लंबित मामले पर चर्चा करने के लिए आयोजित किया गया था। जनवरी में आयोजित पहली बैठक में चुनाव आयोग के सभी तीन निर्वाचन आयुक्तों के बराबर संवैधानिक संरक्षण प्रदान करना, मतदाता पंजीकरण के लिए कई कट-ऑफ तारीखों को रखने और वोटों की गिनती के लिए टोटलाइजर मशीनों की शुरूआत करने के लिए सहमति हुई थी।

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तो वहीं दूसरी बैठक में,  चुनाव आयोग ने अदालत द्वारा किसी उम्मीदवार के खिलाफ आरोप तय करने पर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराए जाने का प्रावधान दिया था। इसके आलावा चुनावी मौसम में किसी रिश्वत लेना और देना भी अपराध मन जाए और किसी अख़बार या मीडिया में पेड न्यूज देने के लिए दो साल की सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया था। बता दें कि कानून सचिव ने इन सभी प्रस्तावों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है।