नई दिल्ली। भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल कर आरोप लगाया है कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने उनका प्रमोशन रोकने की कोशिश की थी। सेनाध्यक्ष सुहाग ने केन्द्रीय विदेश राज्यमंत्री और रिटार्यड जनरल वी.के. सिंह पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने गलत इरादे से आरोप लगाकर प्रमोशन रोकने की कोशिश की थी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सेनाध्यक्ष सुहाग ने कहा कि वी. के. सिंह दूसरे कारणों से उन्हें दंडित करने के लिए रहस्यमयी तरीके से उन पर मनगढ़ंत आरोप लगा रहे थे। बुधवार(17 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में जनरल दलबीर सिंह ने कहा कि साल 2012 में तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (सीओएएस) जनरल वी के सिंह की कारगुजारियों का मैं खुद पीड़ित रहा हूं, जिनका मकसद आर्मी कमांडर की नियुक्त के मेरे प्रमोशन को रोकना था।
हलफनामा में सेनाध्यक्ष ने आगे लिखा है कि 19 मई 2012 को भेजे गए कारण बाताओ नोटिस में मेरे खिलाफ गलत, आधारहीन और मनगढ़ंत आरोप लगाए गए थे और उन पर ‘अवैध’ डिसिप्लीन और विजिलेंस बैन (डीवी) लगाया गया था। जनरल सुहाग ने ये हलफनामा उस याचिका के जवाब में दिया है, जिसमें रिटायर्ड जनरल रवि दस्ताने ने आरोप लगाया था कि जनरल बिक्रम सिंह के बाद दलबीर सिंह को सेना प्रमुख बनाए जाने के लिए पक्षपातपूर्ण तरीके से उन्हें आर्मी कमांडर नियुक्त किया गया था।
गौर हो कि सुहाग के नेतृत्व वाली एक यूनिट पर आरोप था कि उन्होंने अप्रैल से मई 2012 के बीच पूर्वोत्तर क्षेत्र में हत्याएं और लूटपाट की थीं। इसके लिए उस वक्त के सेना प्रमुख वीके सिंह ने सुहाग के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उनकी पदोन्नति पर रोक लगा दी थी। सेना प्रमुख वीके सिंह ने सुहाग के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हुए उनकी पदोन्नति पर रोक लगा दी। तब से ही यह विवाद चल रहा है।
वहीं वीके सिंह अपनी कार्रवाई को हमेशा जायज बताते रहे हैं। एक बारे उन्होंने ट्विटर पर लिखा था, ‘अगर कोई यूनिट बेगुनाहों की हत्या करती है, लूटपाट करती है और उसके बाद यूनिट का प्रमुख उन्हें बचाने का प्रयास करता है, तो क्या उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? अपराधियों को खुला घूमने दिया जाना चाहिए?