सैनिकों को समय पर नहीं मिले मेडल, दुकानों से मेडल खरीदने पर मजबूर

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रफी कहते हैं,’मुझे सभी मेडल्स हाथो-हाथ मिल जाने चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’ उन्हें जम्मू-कश्मीर के दुर्गम ऊंचाई वाले इलाकों में सेवा के लिए ये मेडल दिए गए थे। पूर्व सैन्यकर्मियों का कहना है कि आर्मी के विभिन्न विंग्स में तालमेल न होने की वजह से मेडल पहुंचाने में देर होती है।

इस तरह निजी दुकानों में मेडल बेचा जाना सुरक्षा के लिए भी बड़ खतरा है। हमारे रिपोर्टर ने पड़ताल के लिए कई ऐसी ‘टेलर कॉपियां’ खरीदीं जो सरकार द्वारा जारी नहीं की गई थीं। दुकानों में आर्मी यूनिफॉर्म पर लगा ए जाने वाले बैज भी मिलते हैं। इतना ही नहीं रिपोर्टर ने करगिल वार में हिस्सा लेने वाले सैनिकों को दिए जाने वाले मेडल्स के रेप्लिका भी खरीदे। इनमें करगिल युद्ध के लिए ‘ऑपरेशन विजय’, डेजिग्नेटेड ऑपरेशन के लिए ‘सामान्य सेवा मेडल’ और ऊंचे स्थानों पर तैनाती के लिए ‘उच्च तुंग’ मेडल शामिल थे। तीनों मेडल्स के साथ उचित रिबन भी लगे थे।

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सैनिक वेलफेयर के डायरेक्टर कर्नल पी. रमेश कुमार (रिटायर्ड) ने कबूला कि सैनिकों को मेडल देने में देरी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि जो सैनिक मेडल जल्दी पाना चाहते हैं वे इन्हें दुकानों से खरीद सकते हैं। कर्नल रमेश का कहना है कि दुकानों से मेडल खरीदने वाले सैनिक कोई ‘फ्रॉड’ नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे वही खरीद रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं। इंडियन मिलिटरी वेबसाइट्स के संघ ‘भारत रक्षक’ के जगन पिल्लारिशेट्टी ने कहा,’मेडल पहनना किसी भी सैनिक के लिए गर्व का विषय है। ये सैनिकों द्वारा दी जाने वाली तमाम सेवाओं को सरकार की ओर से मिलने वाली पहचान और प्रशंसा को दर्शाते हैं।’

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