सैनिकों को समय पर नहीं मिले मेडल, दुकानों से मेडल खरीदने पर मजबूर

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मेडल पाना किसी भी सैनिक के लिए गौरव की बात होती है। लेकिन कई ऐसे बहादुर सैनिक हैं जो मेडल के हकदार होते हुए भी दुकानों से रेप्लिका के मेडल खरीद रहे है। क्योकि आर्मी ऑरिजनल मेडल पहुंचाने में सालों लगा देती है।

ये रेप्लिका मेडल हैदराबाद, सिकंदराबाद के मेहदीपटनम और गोलकोंडा में खरीदे जा सकते हैं। इन्हें ‘टेलर कॉपी’ कहा जाता है जो लाल बाजार के रेजिमेंटल मार्केट में 40-180 रुपये में मिलते हैं। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक नॉन-गैलेंट्री अवॉर्ड्स को डिलिवर करने में 10 साल तक की देरी हो जाती है। हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया की छानबीन के मुताबिक मेडल्स और बैजेस के साथ पूरी यूनिफॉर्म खरीदने के लिए कम से कम 2,500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। गैलेंट्री अवॉर्ड्स (वीरता पुरस्कार) के अलावा बाकी सभी मेडल्स खरीदे-बेचे जाते हैं। चूंकि वीरता मेडल पर इसे पाने वाले सैनिक का नाम और आर्मी नंबर लिखा होता है इसलिए इसे दुकानों से नहीं खरीदा जा सकता।

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सेना में 24 साल तक अपनी सेवा देने वाले मोहम्मद रफी ने कबूला,’हां, मैंने 10 में से 9 मेडल दुकान से खरीदे हैं।’ आर्मी ने रफी को 10 मेडल देने का ऐलान किया था लेकिन उन तक सिर्फ एक मेडल ही पहुंचा। वह जब साढ़े सत्रह साल के थे, तभी से उन्होंने सेना में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी काबिलियत और लगन से अच्छी रैंक पाई और आखिर में हवलदार बनकर लौटे।

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