जजों ने कहा, “FIR दर्ज करवाने का फैसला काफी मुश्किल होता है। जब आरोपी परिवार का ही सदस्य हो, तो यह बहुत मुश्किल हो जाता है। परिवार के सदस्यों द्वारा की गई ऐसी हरकत पर खुलकर बात करना अभी भी एक सामाजिक वर्जना है। ऐसी वारदातें पीड़ित और उसके परिवार को तकलीफ पहुंचाती हैं। ऐसे मामलों में ना केवल परिवार की इज्जत दांव पर होती है, बल्कि इससे कई रिश्ते भी टूट सकते हैं।” अदालत ने आगे कहा, “कई शोधों में पाया गया है कि इस तरह के 80 फीसद मामले नजदीकी रिश्तेदारों और जान-पहचान के लोगों द्वारा किए जाते हैं। बाहर से ज्यादा घर के अंदर खतरा होता है। जब बलात्कार करने वाला जान-पहचान का होता है, तो ज्यादातर मामलों में अपराध की शिकायत भी नहीं की जाती है।”
गौरतलब है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने रेप पीड़ित के साथ हमदर्दी दिखाते हुए कुछ साल पहले एक ऐतिहासिक फैसला लिया था, जिसके अंतरगर्त मेडिकल जांच के दौरान होने वाले टू फिंगर टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। और ऐसे में SC ने हाल ही में जो फैसला सुनाया है वो रेप पीडिताओं के लिए राहत की बात है।































































