यह भी बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि तीरथ सिंह ठाकुर एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्होंने चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था। जम्मू कश्मीर में 1987 के विधानसभा के चुनावों में उन्होंने रामबन विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आज़माया और उनका मुक़ाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भरत गांधी के साथ था। तीरथ सिंह ठाकुर ये चुनाव हार गए थे। उन्हें कुल 8597 वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भरत गांधी को 14339।
रामबन के पुराने लोगों में से एक ग़ुलाम क़ादिर वानी बताते हैं कि ठाकुर चुनाव इसलिए हार गए थे क्योंकि राजनीति और ख़ास तौर पर चुनावों में जो तिकड़म नेता अपनाया करते हैं, उससे वो पूरी तरह अनभिज्ञ थे।
ग़ुलाम क़ादिर वानी कहते हैं, “चुनाव जीतने के लिए सब कुछ करना पड़ता है। सिर्फ उसूलों से चुनाव जीते नहीं जाते। हालांकि उनके पिता उपमुख्यमंत्री रहे हैं, मगर तीरथ सिंह ठाकुर को वो सारे तिकड़म नहीं आते थे। इसलिए वोटरों को रिझाने के लिए वो ऐसा कुछ नहीं कर पाए।”
साल 1987 में भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा के चुनाव काफी विवादित हुए जिसमे बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लगाए गए. इस चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठजोड़ हुआ था और इस गठजोड़ ने 66 सीटें जीती थीं। कहा जाता है कि इस दौर में जम्मू कश्मीर में ‘मिलिटेंसी’ शुरू हुई थी।