समाजवादी पार्टी के कुनबे में चल रही कलह को सियासी ड्रामा माना जा रहा है। 72 घंटे चला ये ड्रामा मंगलवार मुलायम सिंह के बयान के साथ खत्म हो गया। इस पर एक्सपर्ट्स का मानना है यह सारा विवाद स्क्रिप्टेड था। जो कि सिर्फ अखिलेश की छवि को सुधारने के लिए किया गया था। एक्सपर्ट्स की माने तो यह सारा ड्रामा पिछले महीने मुलायम कुनबे में हुए विवाद से अखिलेश की छवि को जो नुकसान पहुंचा था उसे सुधारने व अखिलेश की इमेज मजबूत करने के लिए किया गया था।
भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रोफेसर एके वर्मा का कहना है, ‘ये झगड़ा प्रायोजित था। जब पिछले दिनों अखिलेश ने खनन मंत्री और करप्शन के आरोपी गायत्री प्रजापति को कैबिनेट से निकाला था और चाचा शिवपाल यादव से विभाग छीने थे तो मुलायम के दखल के बाद इन्हें वापस मंत्रिमंडल में लिया गया था। जिसके बाद जनता के बीच अखिलेश की छवि को काफी नुकसान पहुंचा था। यह बात आम हो गई थी कि अखिलेश खुद फैसले नहीं लेते। इसके चलते इस बार 72 घंटे के ड्रामे की स्क्रिप्ट पहले से लिख ली गई। इसमें अखिलेश को मजबूत लीडर के तौर पर प्रेजेंट किया गया, जो अपने फैसले खुद लेता है। इसी वजह से जब मुलायम सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिवपाल को दोबारा कैबिनेट में शामिल करने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर बर्खास्त मंत्रियों को शामिल करना है तो ये सीएम का अधिकार है। मुलायम सिंह अखिलेश को मजबूत बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि न तो इस बार उन्होंने कैबिनेट में शिवपाल को वापस लेने की बात कही और न ही अखिलेश पर सवाल खड़े किए। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी साफ किया कि टिकट बंटवारे में भी अखिलेश की बात सुनी जाएगी। मंत्रियों को बर्खास्त करने की वजह से जहां सीएम की छवि मजबूत हुई है, वहीं शिवपाल के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।’
सीनियर जर्नलिस्ट रतनमणि लाल का कहना है कि मुलायम सिंह के पास अब बहुत ज्यादा ऑप्शन नहीं बचे हैं। बदलाव करने का अब वक्त नहीं है क्योंकि चुनाव नजदीक हैं। लिहाजा, मुलायम सिंह चाहते हैं कि जो चीजें हैं वो उसी तरह से बनी रहें। अगर ज्यादा कुछ करेंगे तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस लड़ार्इ से अखिलेश मजबूत स्थिति में हैं। जनता में उनकी छवि मजबूत सीएम की तरह बनी है। इसी वजह से मुलायम ने यह भी कहा कि अखिलेश ही सीएम बने रहेंगे।
वहीं सीनियर जर्नलिस्ट दिलीप सिन्हा का कहना है कि मुलायम सिंह के साथ अखिलेश यादव इसलिए नहीं आए थे क्योंकि वे अभी भी नाखुश हैं। अंदरखाने तलवारें अभी भी खींची हुई हैं। अखिलेश इस बात से नाखुश हैं कि रामगोपाल यादव की वापसी पर कोई फैसला नहीं हुआ है। आने वाले समय में काफी कुछ पार्टी में बदलाव देखने को मिल सकता है।