1991 के बाद भारत में नव-उदारीकरण की आर्थिक नीतियां लागू की गई। नई प्रौद्योगिकी और इससे उपजते हुये सेवा और उद्योग देश की अर्थ, नीति में कई सारे महत्वपूर्ण बदलाव हुए। सेवा क्षेत्र जिसका देश के सकल घरेलु उत्पाद में अंशदान 25 फीसदी से भी कम था वो बढ़कर 50 फीसदी से भी अधिक हो गया जबकि कृषि का अंशदान 20 फीसदी से भी कम रह गया।
इस बदलाव का भाषा पर भी जबरदस्त असर पड़ा। अंग्रेजी के अलावा किसी दूसरे भाषा की पढ़ाई को समय की बर्बादी समझा जाने लगा। जब हिन्दी भाषी घरों में बच्चे हिन्दी बोलने से कतराने लगे, या अशुद्ध बोलने लगे तब कुछ विवेकी अभिभावकों के समुदाय को एहसास होने लगा कि घर-परिवार में नई पीढ़ियों की जुबान से मातृभाषा उजड़ने लगी है।