जलवायु में तेज़ी से बदलाव हो रहा है है। मौसम की अपनी खासियत होती है। लेकिन अब इसका ढंग बदल रहा है गर्मीयां लंबी होती जा रही हैं और सर्दीयां छोटी। यही है जलवायु परिवर्तन। जिससे मुक़ाबला करने के लिए भारत सहित 200 देशों ने वौश्विक समझौते सहमति जताई है। जिससे ग्रीन हाउस गैसें कम होंगी।
ग्रीन हाउस गैसों में से वातावरण के लिए सबसे ज़्यादा हानिकारक गैस कार्बन डाइ ऑक्साइड है। इंडियास्पेंड की गणना के अनुसार पिछले 35 वर्षों से देश के थर्मल पावर स्टेशनों से जो गैस उत्सर्जित होता रहा है, उसके छठे हिस्से को बंद कराने के बराबर गैस के उत्सर्जन में कमी आएगी। यह गणना 2012 में थर्मल पावर स्टेशनों से कार्बन डाइऑक्साइड के लगातार उत्सर्जन के आधार पर की गई है।
अफ्रीकी देश रवांडा में 15 अक्तूबर, 2016 को कम से कम 197 देशों ने एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते पर सहमति जताई है। समझौते में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और खपत को कम करने की बात की गई है। ज्ञात हो कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा कर वायुमंडल का ताप बढ़ाने के मामले में 12,000 गुना अधिक खतरनाक है। यह समझौता 1 जनवरी, 2019 से प्रभाव में आएगा और विश्व स्तर पर CO2 के बराबर 70 बिलियन टन उत्सर्जन को टाला जा सकेगा। यह उष्णकटिबंधीय वनों की आधी कटाई को रोकने के बराबर है।
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