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नई दिल्ली स्थित अनुसंधान संस्थान ‘काउंसिल ऑन एनर्जी एन्वाइरन्मन्ट एवं वाटर’ (सीईईजब्लू) में शोधकर्ता वैभव चतुर्वेदी के अनुसार, रवांडा में तय किए गए अंतिम समझौते के तहत 2015 से 2050 के बीच भारत अपनी संचयी हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन का 75 फीसदी कम करेगा।
विकसित देश 2019 से हाइड्रोफ्लोरोकार्बन काम शुरू कर देंगे, वहीं चीन सहित विकासशील देश 2024 से इस पर काम शुरू करेंगे जबकि भारत उन देशों में शामिल है जो सबसे अंत 2028 से हाइड्रोफ्लोरोकार्बन की खपत में कटौती शुरू करेंगे।
यह समझौता मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का हिस्सा है। यह प्रोटोकॉल ओजोन पदार्थों, और अब ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों के उपयोग को कम करने के लिए एक वैश्विक समझौता है।
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