नेपाल में पिछले साल संविधान लागू किया गया था जिसे अब वहां के मधेशी और अन्य जातीय समूह बदलने की मांग कर रहे हैं। अभी पिछले महीने ही नए संविधान की वर्षगांठ मनाई गयी थी। संविधान लागू होने से ही मधेशी अपनी उपेक्षा के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
शहरी विकास मंत्री अर्जुन नरसिंह ने शुक्रवार को बताया कि सरकार ने जातीय समूहों की मांगों को पूरा करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का फैसला किया है। इसके लिए अगले कुछ हफ्तों में संविधान संशोधन का प्रस्ताव संसद में पेश किया जाएगा। देश के तीनों बड़े दल नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-माओवादी और सीपीएन-यूएमएल की एकजुटता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इसके बिना संविधान में संशोधन संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि संविधान लागू होना एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि लोग लंबे समय से लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के सपने देख रहे थे। अब इसमें संशोधन कर समाज के सभी वर्गो के लिए इसे स्वीकार्य बनाने भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
आपको बता दें संविधान में उचित प्रतिनिधित्व ना मिलने पर मधेशीयों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। जिसके बाद उन्होने कई महीनों तक भारतीय सीमा पर रोक लगा दी थी, जिसके चलते नागरिकों को ज़रूरी सामानों की किल्लत का सामना करना पड़ा। मधेशीयों और अन्य जतियों को संतुष्ट करने में विफल रही ओली सरकार के बाद अगस्त में सीपीएन-माओवादी नेता प्रचंड के नेतृत्व में नई सरकार बनी थी। और प्रचंड ने सबको साथ लेकर चलने के चलते संविधान में संशोधन करने के संकेत दिये थे। नेपाल में 2006 में गृहयुद्ध खत्म होने के बाद नया संविधान बनाने का काम शुरू किया गया था। लंबे गतिरोध के बाद पिछले साल नया संविधान लागू किया गया था और तभी से मधेशी और अन्य जातीय समूह अपनी उपेक्षा के खिलाफ आंदोलनरत हैं।
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