सरकार ने देशभर में लगने वाले पशु-मेलों में काटने के लिए गायों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया दिया है। पशुपालन उद्योग पर केंद्र द्वारा जारी की गई नोटिफिकेशन में सिर्फ भूमि मालिकों के बीच इस तरह के व्यापार की इजाजत दी गई है। इस नियम के तहत गाय, बैल, भैंस, सांड, ऊंट आदि जानवर शामिल किए गए हैं। माना जा रहा है कि इससे देश के मांस निर्यात कारोबार पर असर पड़ेगा।
मंगलवार को जारी की गई नोटिफिकेशन में कहा गया है, ”ऐसा उपक्रम कीजिए कि जानवर सिर्फ खेती के कामों के लिए लाए जाएं, न कि मारने के लिए।” देशभर में हर साल करीब 1 लाख करोड़ रुपए का मांस कारोबार होता है, साल 2016-17 में 26,303 करोड़ रुपए का निर्यात भी हुआ। उत्तर प्रदेश मांस निर्यात के मामले में सबसे ऊपर, उसके बाद आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना का नंबर आता है। ज्यादातर राज्यों में साप्ताहिक पशु बाजार लगते हैं और उनमें से कई राज्य पड़ोसी राज्यों से लगी सीमा पर पशु-मेले आयोजित करते हैं ताकि व्यापार फैलाया जा सके।
केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए यह नियम अगले तीन महीनों में लागू किए जाने हैं। इनमें कई कागजातों का प्रावधान किया है, हालांकि गरीब-अनपढ़ किसान और गाय-व्यापारी इन झंझटों से कैसे निपटेंगे, यह देखने वाली बात होगी। नए नियम के अनुसार, सौदे से पहले क्रेता और विक्रेता, दोनों को ही अपनी पहचान और मालिकाना हक के दस्तावेज सामने रखने होंगे। गाय खरीदने के बाद व्यापारी को रसीद की पांच कॉपी बनवाकर उन्हें स्थानीय राजस्व कार्यालय, क्रेता के जिले के एक स्थानीय पशु चिकित्सक, पशु बाजार कमेटी को देनी होगी। एक-एक कॉपी क्रेता और विक्रेता अपने पास रखेंगे।
2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से कई भाजपा शासित राज्यों में गौ-हत्या को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। हालांकि कथित गौरक्षकों की गुंडागर्दी ने भाजपा के गौरक्षा अभियान को खासा नुकसान पहुंचाया है। पिछले साल गुजरात के ऊना में दलित पुरुषों को गो-तस्करी के आरोप में जमकर पीटा गया था, जिसके बाद यह मामला राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गई। इस साल अप्रैल में, कथित गौरक्षकों ने अलवर में डेरी कारोबारी पहलू खान को मार डाला था।