विपक्ष को दिए वादे को तोड़ कर कोविंद का समर्थन करेंगे नीतीश कुमार !

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कोविंद से बेहतर तालमेल
जब से रामनाथ कोविंद बिहार के गवर्नर बने, तब से उनके नीतीश कुमार से बेहतर संबध रहे हैं। एक भी ऐसा मौका नहीं आया, जब बतौर राज्यपाल कोविंद ने नीतीश सरकार के लिए मुश्किल पैदा की। ऐसे समय जब शराबबंदी पर बना सख्त कानून विवादों में था और कानूनी स्तर पर इसकी आलोचना हो रही थी, कोविंद ने इस पर अपनी सहमित बिना सवाल किए दे दी थी। इसके अलावा कुलपतियों की नियुक्ति पर भी नीतीश की पसंद को अपनी सहमित दी। दोनों के बीच परस्पर संबंध बहुत अच्छे रहे।

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नीतीश का महादलित दांव
नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन महादलित वोट के सहारे ही पाई थी। यही वोट उनका सबसे बड़ा दांव भी है। ऐसे में नीतीश कुमार का तर्क है कि अगर वह कोविंद का विरोध करते हैं तो इसका गलत संदेश जा सकता है। नीतीश कुमार का यह भी मानना है कि ताक में बैठी बीजेपी उनके विरोध का उपयोग यूपी के तर्ज पर बिहार में भी राजनीति करने के लिए कर सकती है। जेडीयू बिहार में दलित और अति पिछड़े तबके को अपने पक्ष में रखने की पूरी कोशिश कर रही है। कोविंद इसी बिरादरी से आते हैं।

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सभी विकल्प खुले रखने की कवायद
नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में भी अलग राह चुनकर बिहार की राजनीति में सभी विकल्प खुला रखना चाहते हैं। जब लालू प्रसाद और उनके परिवार पर करप्शन से जुड़े नए केस आए तो बीजेपी ने उन्हें खुला ऑफर दिया कि वह उनके साथ आ जाएं। हालांकि, नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव को खारिज किया। लेकिन इस संभावना के बने रहने के बदौलत वह बिहार में राजनीतिक संतुलन बनाने में कामयाब रहे हैं।
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