श्रीनगर : भाषा : जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने आज केन्द्र से कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता और अलगाव के मूल कारण पर गौर करने को कहा। उन्होंने कहा कि बल के प्रयोग से भावनाओं को कुचलना न केवल व्यर्थ होगा बल्कि बहुत प्रतिकूल भी होगा। उन्होंने कहा कि घाटी में मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता की तरह इस तरह का हर दौर कश्मीर में लंबे समय से विश्वास में आ रही सुनियोजित दरारों का प्रमाण है।अब्दुल्ला ने यहां एक बयान में कहा कि नौ अगस्त 1953 को जो हुआ वह कश्मीर की जनता को लगातार इस बात की याद दिलाता है कि किस तरह नयी दिल्ली ने यहां या तो राजनीतिक भावना को दबाया और या फिर कथित दूर दृष्टि से उसपर उस समय जैसे तैसे काबू पाने की चलताउ नीति अपनाई।
उन्होंने कहा कि जब तक कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता और अलगाव के मूल कारण पर संवैधानिक और राजनीतिक तरीके से गौर नहीं किया जाता, बल के प्रयोग से भावनाओं को दबाना न केवल व्यर्थ है बल्कि बहुत प्रतिकूल भी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने लोगों की मौत पर दुख जताया।उन्होंने घाटी में बिगड़ती स्थिति पर केन्द्र को आगाह करते हुए कहा कि सरकार के लिए यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर तनाव का मूल ‘‘अगस्त 1953 का अन्याय है जब कश्मीर में राजनीतिक भावनाओं को दबाने के लिए जनता द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से चुने गये जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को गैरकानूनी रूप से हटाया गया।’’ अब्दुल्ला ने कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर संसदीय चर्चा का स्वागत किया और कहा कि संसद को घाटी की अशांति और अलगाव के मूल कारण को स्वीकार करने और समझने की जरूरत है और नौ अगस्त 1953 को जम्मू कश्मीर की जनता के खिलाफ हुए अन्याय की आपराधिक प्रकृति को स्वीकार करना राष्ट्रीय स्तर पर खुले एवं वृहद मन के आत्मनिरीक्षण के लिए अच्छी शुरूआत होगी।
उन्होंने कहा कि छल कपट और जिम्मेदारी से भागने से अब भला होने वाला नहीं। पूर्व मंत्री ने कहा कि कश्मीर की समस्या कश्मीर की जनता और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर है, यह किसी अन्य देश या आतंकवाद के बारे में नहीं है।