‘गाय माता के नाम पर इंसानों को तो मत मारो, हम मुसलमान भी हिंदुस्तान के ही हैं’

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गाय माता

राजस्थान के अलवर में कथित गोरक्षों के हमले का शिकार हुए पशुपालक पहलू खान की मौत को तीन महीने हो चुके है। लेकिन परिवार अब तक संभल नहीं पाया है। पहलू खान का बेटा अपने पिता के साथ हुए सलूक के कारण गुस्से और निराशा में है। पहलू खान के बेटे अरशद ने शुक्रवार को कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में कृषि संकट, काऊ पॉलिटिक्स (गाय पर राजनीति) और लिंचिंग (हत्या) पर बोलते हुए उसने कहा, “मुसलमानों को कुछ लोग बोलते हैं पाकिस्तान जाने को…पर मैं इस देश में पैदा हुआ था और इस देश का हूं।” डेयरी उत्पादन कोई नया पेश नहीं है। हमारे पास सभी दस्तावेज थे। हमारे लिए भी (मुस्लिमों) गाय माता है, लेकिन इसके लिए आपको किसी भी इंसान की जान नहीं लेनी चाहिए। मेरे पिता की हत्या को तीन महीने हो गए लेकिन न्याय के आसपास कोई भी बातचीत नहीं हुई।

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इस चर्चा के दौरान प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर डी एन झा, जिन्होंने “द माइथ ऑफ द होली काऊ” लिखी और जेएनयू के प्रोफेसर मौजूद रहे। झा ने अपनी पुस्तक में दिए गए तर्कों को संक्षेप में बताते हुए कहा कि हमारे पूर्वज गोमांस खाने के पक्ष में थे। वैदिक काल में बलिदान हाथों से होता था। भारत माता, गोमाता और हिदुत्व 19वीं सदी की अवधारणा है। हमें इसकी पुरातनता पर सवाल करना चाहिए।

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Source: Jansatta