प्रणब मुखर्जी विदाई समारोह: राष्‍ट्रपति ने कहा- बार-बार संसद की कार्यवाही बाधित करने से बचें

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प्रणब मुखर्जी

राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी का विदाई समारोह रविवार शाम संसद के सेंट्रल हॉल में हुआ।लोकसभा एवं राज्‍यसभा के सदस्‍य देश के 13वें राष्‍ट्राध्‍यक्ष प्रणब मुखर्जी को विदाई देने एकत्र हुए। समारोह में लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय कैबिनेट, विपक्षी पार्टियों के नेता मौजूद रहे। लोकसभा स्‍पीकर ने सांसदों द्वारा हस्‍ताक्षरित एक पुस्‍तक मुखर्जी को भेंट की।

समारोह में राष्‍ट्रपति ने कहा, अगर मैं यह दावा करूं कि मैं इस संसद की रचना हूं तो शायद इसे अशिष्‍टता नहीं समझा जाएगा। मुझे लोकतंत्र के इस मंदिर ने, इस संसद ने तैयार किया है। 22 जुलाई 1969 को पहला राज्यसभा सत्र अटेंड किया था। संसद में 37 साल का सफर 13वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के बाद ख़त्म हुआ था, फिर भी जुड़ाव वैसा ही रहा। अगर मैं यह दावा करूं कि मैं इस संसद की रचना हूं तो शायद इसे अशिष्‍टता नहीं समझा जाएगा। संसद में पक्ष और विपक्ष में बैठते हुए मैंने समझा कि सवाल पूछना और उनसे जुड़ना कितना ज़रूरी है। जब संसद में किसी व्यवधान की वजह से कार्रवाई नहीं हो पाती तो लगता है कि देश के लोगों के साथ गलत हो रहा है। मैंने बहुत से बदलाव देखे, हाल ही में जीएसटी का लागू होना भी गरीबों को राहत देने की दिशा में बड़े कदम का उदाहरण है।

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राष्‍ट्रपति ने कहा, सरकार को कोई कानून लाने के लिए अध्यादेश के विकल्प से बचना चाहिए और सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही इसका इस्तेमाल होना चाहिए। संसद भवन के केंद्रीय सभागार में आयोजित विदाई समारोह में राष्ट्रपति ने कहा, “मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि अध्यादेश का इस्तेमाल सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही करना चाहिए और वित्त मामलों में अध्यादेश का प्रावधान नहीं होना चाहिए।” 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हो रहे प्रणब मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि अध्यादेश का रास्ता सिर्फ ऐसे मामलों में चुनना चाहिए, जब विधेयक संसद में पेश किया जा चुका हो या संसद की किसी समिति ने उस पर चर्चा की हो। मुखर्जी ने कहा, “अगर कोई मुद्दा बेहद अहम लग रहा हो तो संबंधित समिति को परिस्थिति से अवगत कराना चाहिए और समिति से तय समयसीमा के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहना चाहिए।”

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Source: Jansatta