वीआईपी कल्चर को दूर करने के लिए की गाड़ियों से लाल और नीली बत्तियां तो हटा दी गईं, लेकिन अब भी अफसरों के मन से बत्ती उतर नही पा रही है। आपको बता दे की जिला प्रशासन के अधिकारियों ने इसका उपाय निकाल लिया है। प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी गाड़ियों पर अपने पद और नाम वाले स्टिकर लगा लिए हैं।
सोमवार को कलेक्ट्रेट में मीटिंग के दौरान अधिकारियों की पार्किंग में खड़ी उनकी गाड़ियों पर बत्तियां तो नजर नहीं आई, लेकिन लगभग सभी की गाड़ियों पर उनके पदों के स्टिकर लगे थे। हांलाकि डीएम की गाड़ी पर कोइ पद का कोई टैग नही था,वही तहसीलदार ने अपनी गाड़ी पर मजिस्ट्रेट लिखवाया है तो एसडीएम, एडीएम व अन्य अफसरों ने भी पद लिखवा लिए हैं। तो ये कहना गलत नही है कि अफसरों ने अपनी वीआईपी पहचान बताने के लिए गाड़ियों पर पद लिखे हैं।
अधिकारी कह रहे हैं कि अब पहले जैसा रुतबा नहीं रहा। पहले बत्ती लगी अफसरों की गाड़ियों को दूर से ही पहचान कर सलाम ठोकी जाती थी। और ग्रेनो व यमुना अथॉरिटी के जनरल मैनेजर भी नीली बत्ती लगाकर रुतबा झाड़ते फिरते थे, हालांकि अथॉरिटी जनरल मैनेजर इसकी परमिशन नहीं भी नही होती है। प्रधानमंत्री ने रविवार को मन की बात में कहा था कि लालबत्ती वाले वाहनों से ही नहीं, मन से भी इसका मोह हटाएं । बावजुद इसके डीएम को छोड़कर अन्य प्रशासनिक अफसरों ने अपनी गाड़ियों पर पदनाम के स्टीकर लगा लिए हैं। वहीं पुलिस अफसरों के रुतबे में कोई कमी नहीं आई है। उनकी बत्तियां बरकरार हैं।
सोमवार से देश में वीआईपी कल्चर का प्रतीक बनी लाल और नीली बत्तियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। अब से केवल आपातकालीन वाहनों को नीली बत्ती के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। उधर, पुलिस अफसरों की गाड़ियों पर नीली बत्तियां बरकरार हैं।