लखनऊ। गंगा के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भावनात्मक जुड़ाव पर विपक्ष पहले से ही हमला कर रहा है। अब आंकड़े भी बता रहे हैं कि बीजेपी के पिछले दो वर्षों के शासनकाल में गंगा की सफाई के लिए आवंटित 3,703 करोड़ रुपये में से 2,958 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन इस पतित पावनी नदी की दशा जस की तस बनी हुई है।
लखनऊ की 10वीं कक्षा की ऐश्वर्य शर्मा नामक विद्यार्थी ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगी, जिसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जो खुलासा किया गया है, उससे साफ है कि बहुप्रचारित ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम ज्यादातर कागजों तक सीमित है। यही हाल पिछले 30 वर्षों के दौरान घोषित हुईं अन्य योजनाओं का रहा है।
लखनऊ की 14 वर्षीय इस लड़की ने 9 मई को भेजे अपने आरटीआई आवेदन में सात सवाल पूछे थे, जिसमें अबतक संवेदनशील मुद्दे, बजटीय प्रावधानों और खर्चों पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठकों के विवरण शामिल हैं। पीएमओ के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी सुब्रतो हजारा ने इन सवालों को जवाब के लिए केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के पास भेज दिया।
मंत्रालय के केके. सप्रा ने 4 जुलाई को भेजे जवाब में बताया कि राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन के लिए 2014-15 में 2,137 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। बाद में इसमें 84 करोड़ रुपये की कटौती कर इसे 2,053 करोड़ रुपये कर दिया गया। लेकिन केंद्र सरकार ने भारी प्रचार-प्रसार के बावजूद सिर्फ 326 करोड़ रुपये खर्च किए, और इस तरह 1,700 करोड़ रुपये बिना खर्चे रह गए।
वर्ष 2015-16 में भी स्थिति कुछ खास नहीं बदली, अलबत्ता केंद्र सरकार ने प्रस्तावित 2,750 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन को घटाकर 1,650 करोड़ रुपये कर दिया। संशोधित बजट में से 18 करोड़ रुपये 2015-16 में बिना खर्चे रह गया।