नई दिल्ली : नोटबंदी पर विपक्ष का विरोध झेल रही मोदी सरकार को ‘अपनों’ की नाराजगी से भी दो चार होना पड़ रहा है। केंद्र और महाराष्ट्र में एनडीए की अहम साझेदार शिवसेना, इस मुद्दे पर मोदी सरकार के लिए किरकिरी का सबब बनती जा रही है। एनडीए के सहयोगी दलों में शिवसेना इकलौती ऐसी पार्टी है जिसने नोटबंदी के मसले पर सरकार का खुलकर विरोध किया है। इतना ही नहीं, बुधवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब नोटबंदी के विरोध में राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगी, तो शिवसेना भी उनके साथ कदमताल करती नजर आएगी।
बुधवार से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है, जिसमें विपक्ष नोटबंदी के मुद्दे पर सरकार को घेरने की पुख्ता रणनीति तैयार कर चुका है, लेकिन सबकी निगाहें नोटबंदी के खिलाफ ममता बनर्जी के राष्ट्रपति भवन मार्च पर भी होंगी क्योंकि सरकार की सहयोगी शिवसेना भी इसमें शामिल हो रही है। शिवसेना के नेता अरविंद सावंत ने इस बात की पुष्टि कर दी है। ऐसे में विपक्ष के विरोध को खारिज कर रही बीजेपी के लिए, शिवसेना के रुख पर जवाब देना आसान नहीं होगा।
इसके पहले भी शिवसेना कई मुद्दों पर सरकार का खुलकर विरोध कर चुकी है। एक तरफ दोनों पार्टियां महाराष्ट्र में होने वाले निकाय चुनाव को साथ मिलकर लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह रवैया। दरअसल, शिवसेना का मानना है कि नोटबंदी का फैसला जनता के हित में नहीं है क्योंकि हड़बड़ी में लिए गए इस फैसले से आम लोग प्रभावित हो रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘हर कोई कह रहा है कि यह सर्जिकल स्ट्राइक है, क्या होगा अगर नाराज और निराश लोग सरकार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर दें।’ ठाकरे ने कहा कि सरकार को स्विस बैंक के खातों में जमा कराए गए सारे काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए थी।
वहीं ममता के मार्च में नेशनल कॉन्फ्रेंस और शिवसेना के अलावा आम आदमी पार्टी के भी शामिल होने की बात कही जा रही है। हालांकि अभी तक इस सबंधी में पार्टी की ओर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है, पर मंगलवार को हुई केजरीवाल और ममता की मुलाकात के बाद यह माना जा रहा है कि केजरीवाल भी इस मार्च का हिस्सा होंगे।
उधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है, ‘जहां तक राष्ट्रपति भवन तक मार्च का सवाल है, सभी ने सहमति से यह निर्णय किया कि अभी ऐसा करना जल्दबाजी होगी। विपक्षी दल के रूप में हमें आने वाले समय में ऐसा करना चाहिए, लेकिन पहले दिन ही नहीं। पहले दिन संसद के भीतर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, इस बारे में सर्वसम्मति थी कि संसद में मुद्दे को उठाने से पहले ही दिन इस मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन जाने की कोई जरूरत नहीं है।