सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं जम्मू-कश्मीर सरकार से कहा कि वे राज्य में मुसलमानों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने या नहीं दिए जाने के सवाल समेत मुद्दों पर बैठकर आपस में बात करें और इस बात पर फैसला लें। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भी प्रधानमंत्री योजनाओं और सरकारी योजनाओं के तहत सुविधाएं देने की मांग वाली याचिका के मामले पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार को आपस में बैठे और यह तय करें कि क्या जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं या नहीं। इसके तहत उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए या नहीं। कोर्ट ने कहा कि सरकार चार हफ्ते में फैसला ले।
इस संबंध में जम्मू के वकील एडवोकेट अंकुर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले फायदे मुसलमान ले रहे हैं जो कि यहां पर बहुसंख्यक हैं। याचिका में दावा किया गया कि धार्मिक और भाषा के आधार वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों को अवैध और तानाशाही वाले तरीके से खत्म किया जा रहा है। यह फायदे अयोग्य वर्ग को दिए जा रहे हैं।
सुनवार्इ के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिशीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक समुदाय जो कि बहुसंख्यक है लेकिन किसी जगह वह अल्पसंख्यक है तो उनसे जुड़े मुद्दों की जांच के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय काम कर रहा है। इस पर कोर्ट की बैंच ने कहा, “हम इस बात की तारीफ करते हैं कि यह काफी महत्वपूर्ण मसला है। जिस तरह से अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है तो उसे ध्यान में रखना होगा। यदि किसी समुदाय को कोई सुरक्षा दी गई है तो फिर इस तरह की सुरक्षा को लागू करने के लिए आपसे बेहतर स्थिति में कौन हैं।”
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