दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बार बार अध्यादेश लाने के सरकार के फर्मूले पर बहुत ही सख्त टिप्पणी किया है। उच्चतम न्यायलय ने कहा कि यह संविधान के साथ ‘धोखा’ है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रिया है। खासकर तब जब सरकार लगातार अध्यादेशों को विधायिका के सामने रखने से बच रही हो। सात जजों वाली संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से अध्यादेश को फिर से लाने को संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य ठहराया। बेंच ने कहा कि संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपालों को अध्यादेश जारी करने की सीमित शक्ति दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी असर पड़ेगा।
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अध्यादेश को विधायिका के सामने न रखना संवैधानिक ‘अतिक्रमण’ और प्रक्रिया का दुरुपयोग है। फैसले से असहमति जाहिर करने वाले इकलौते जज जस्टिस मदन बी. लोकुर की राय थी कि अध्यादेश को फिर से जारी करना संविधान के साथ धोखा नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी अध्यादेश को फिर से लाने की परिस्थितियां बन सकती हैं।