भारत के पूर्व एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने और इस दौरान सम्मान में खड़ा होने के फैसले को न्यायपालिका का सीमा से बाहर जाना बताया है। उनके मुताबिक यह हमारी राष्ट्रीयता के मूल विचारों के ही खिलाफ है।
गौरतलब हो कि, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान अनिवार्य रूप से बजना चाहिए और सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़ा होना होगा।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए, सोराबजी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘मेरी राय में ये फैसला पर इनक्यूरियम (कानून सीमाओं की अवज्ञा करके दिया गया आदेश)।’ सोराबजी ने अपनी बात साफ करते हुए कहा, ‘क्या ऐसे मामलों में पड़ना अदालत का काम है? क्या खड़े होना ही राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाने का एकमात्र तरीका है? हो सकता है कि कुछ लोग शारीरिक कारणों से न खड़े हो पाएं, कुछ लोग बौद्धिक या धार्मिक कारणों से न खड़े हों पाएं क्योंकि वो सचेत तौर पर ये मान सकते हैं कि उनके धार्मिक विश्वास उन्हें खड़े होने से रोकते हैं। दूसरी अहम बात ये है कि उन्होंने (पीठ ने) बिजोय इमैन्युअल केस का एक बार भी हवाला नहीं दिया है। बिल्कुल रेफर ही नहीं किया। न ही ये बताया कि ये आदेश कैसे लागू होगा? अगर कोई शारीरिक या किन्हीं अन्य कारणों से नहीं खड़ा हो पाता है तो इस पर कौन निगरानी रखेगा। और रही दरवाजे बंद करने की बात…तो कोई इमरजेंसी आ गई तो क्या होगा? अगर किसी को तुरंत शौचालय जाना हो तो?’
सोराबजी के अनुसार सर्वोच्च के इस फैसले को व्यावहारिक तौर पर लागू करना मुश्किल है। सोराबजी ने कहा, ‘उन्होंने आर्टिकल 51-ए के तहत दिए गए मौलिक दायित्व का हवाला दिया है लेकिन संविधान में बहुत से और मौलिक दायित्व हैं तो क्या अदालत उन्हें भी लागू करने के निर्देश देगी? मुझे नहीं लगता कि इन्हें न्यायिक तौर पर लागू किया जा सकेगा। हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए…इसे किस तरह लागू किया जाएगा? मुझे लगता है कि न्यायपालिका जरूरत से आगे चली गई है?’