राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गईं और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गईं।
उनकी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हमेशा डटकर खड़ी रही। किसी के सामने नहीं झुकी अपनी महनत से सरकार को चलाया और कांग्रेस का नाम हमेशा लोगों को याद दिलाया। वैसे तो कांग्रसे बहुत पुरानी पार्टी है, लेकिन अब उसका पुरा कार्यभार सोनिया गांधी के कंधो पर है। जिसमें उनकी मदद करते है, राहुल गांधी जो हमेशा अपनी मां का साथ देते है।