तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की नई दलील, कहा पुरुष होते हैं महिलाओं से समझदार

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तीन तलाक

तीन तलाक मामले पर सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगने और जवाब तलब करने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPB) ने तीन तलाक को सही ठहराने के लिए एक बेतुकी दलील का सहारा लिया है, बोर्ड का कहना है कि पुरुषों का अपनी भावनाओं पर ज्यादा नियंत्रण होता है, इसलिए उनके द्वारा जज्बाती फैसले लेने की संभावना बहुत कम होती है। बोर्ड ने न सिर्फ तीन तलाक को सही ठहराया बल्कि पुरुषों को बहु विवाह के अधिकार की भी वकालत की है। बोर्ड का कहना है कि इसका मकसद महिलाओं की रक्षा करना है। बोर्ड ने ऐडवोकेट एजाज मकबूल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में 68 पेजों का एक हलफनामा दाखिल किया है। उस हलफनामे में ये बातें कही गई हैं। सुप्रीम कोर्ट से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के लिए शायरा बानो एवं अन्य मुस्लिम महिलाओं ने याचिका दाखिल की है। उसी के जवाब में बोर्ड ने यह हलफनामा दाखिल किया है।

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बोर्ड ने कहा है कि 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो मामले में फैसले को पलटने के लिए राजीव गांधी सरकार ने जो कानून बनाया था, वह मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के लिए काफी है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दो टूक- तीन तलाक पर दखल न दे सुप्रीम कोर्ट

तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर किया है। बोर्ड ने मांग की है कि ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने ?

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़, निकाह हलाला और बहुविवाह को ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक बताने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। शिकायत करने वाली महिला की अर्जी पर विचार करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय एवं अन्य को नोटिस भेजा था।

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क्या था पूरा मामला ?

महिला की इस अर्जी पर न्यायालय ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। तलाक़-ए-बिद्दत के तहत कोई मुस्लिम पुरूष एक ही तुह्र (दो मासिक धर्म के बीच की अवधि) या संभोग के बाद एक तुह्र में एक से ज्यादा बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देता है या फिर एक ही बार में तीन बार तलाक बोलकर एकतरफा तलाक देता है।निकाह हलाला किसी महिला की किसी अन्य व्यक्ति से शादी से जुड़ी प्रथा है जिसमें पुरूष एक महिला को तलाक दे देता है ताकि महिला का पिछला पति उससे फिर शादी कर सके।
कौन है शिकायतकर्ता ?
अपने पति द्वारा दुबई से फोन पर तीन बार तलाक बोलने के कारण तलाकशुदा हुईं 26 साल की मुस्लिम महिला इशरत जहां कोलकाता की रहने वाली है, याचिकाकर्ता इशरत जहां ने न्यायालय से यह घोषित करने की मांग की है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट-1937 की धारा-2 असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद-15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार), अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद-25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।

 

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