कर्नाटक के बीजी नगर में चिकित्सा विज्ञान संस्थान ‘आदीचंचनागिरी इंस्टीट्यूट ऑफ नेफ्रोलॉजी’ के विभाग प्रमुख और शोधकर्ता पवन मन्लेशप्पा ने इस मामले में इंडियास्पेंड से बात की। उनका मानना है कि “इससे क्रोनिक किडनी रोग की के बढ़ने की रफ्तार धीमी हो जाएगी, जो आम तौर पर अंत-चरण में गुर्दे की बीमारी पर समाप्त होता है, आवधिक डायलिसिस की आवश्यकता होती है और जीवन काल समाप्त हो जाता है।”
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज के मुताबिक, यह शोध भारत के लिए अधिक महत्व रखता है, जहां वर्ष 2015 में मौत का आठवां प्रमुख कारण किडनी रोग था।
दस्त से लड़ने में प्री-और प्रोबायोटिक्स के फायदे भी उल्लेखनीय हैं। दस्त भारत में एक कठिन सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। इससे हर घंटे पांच साल से कम उम्र के 13 बच्चे या हर दिन 328 बच्चे मौत और जिंदगी से लड़ते रहते हैं।
‘एपडेमीऑलजी एवं इंफेक्शन’ में प्रकाशित जून 2011 के अध्ययन के अनुसार, 12 सप्ताह तक प्रतिदिन लैक्टोबैसिलस केसिनी शिरोटा युक्त प्रोबायोटिक पेय लेने से कोलकाता के झुग्गी-निवासियों के बच्चों में दस्त की घटनाओं में 14 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
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प्रोबायोटिक्स हाइपरकोलेस्ट्रोलाइमिया (उच्च कोलेस्ट्रॉल) और इंसुलिन प्रतिरोध पर प्रभाव डाल सकता है। यह दोनों हृदय रोग और मधुमेह के प्रमुख लक्षण होते हैं। वर्ष 2015 ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज स्टडीज’ के अनुसार हृदय रोग और मधुमेह भारत में मृत्यु का पहला और सातवां प्रमुख कारण है। यह कब्ज को कम करने में भी मदद कर सकते हैं। भारत में सात में से एक व्यक्ति कब्ज से और 10 में से तीन व्यक्ति अपच से पीड़ित है।