
इस बीमारी से लोगों को लगने लगता है कि वे अच्छे नहीं दिखते हैं। माना जाता है कि सेल्फी के दौर ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की संख्या बढ़ा दी है। जब एक इंसान को अपने रोज के काम में कोई एक आदत बाधा डालने लगे तो समझ में आता है कि वह ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर का शिकार है। पढ़ने वाले को पढ़ाई में मन नहीं लगे, काम वाले को काम में मन नहीं लगे, तो यह बीमारी की शुरुआत है। अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह बढ़ती जाती है।
इस बारे में गंगाराम अस्पताल की सायकायट्रिस्ट डॉ. रोमा कुमार ने कहा कि हर महीने ऐसे चार-पांच मरीज आते हैं, जो टीनेजर्स होते हैं। उनमें सेल्फी की लत देखी जाती है। सेल्फी लेना एक नॉर्मल बात है, लेकिन बार-बार सेल्फी लेना और खुद को प्रोजेक्ट करना एडिक्शन बन जाता है।
खुद की विडियो, शक्ल बनाना और फिर रोज पिक्चर डालना बीमारी बनती जा रही है। टीनेजर्स में यह देखी जा रही है। असलियत यह है कि सोशल मीडिया पर लोग सोशल बनते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि कॉन्फिडेंस की कमी होती है। अब बॉडी इमेज को लेकर लड़कियां सजग रहने लगी हैं, अलग-अलग हरकत करती हैं।































































