न्यूयॉर्क के न्यू होप फर्टिलिटी क्लिनिक के डॉक्टर जॉन झांग बताते हैं कि मां के अंडाणु से न्यूक्लियस लेकर उसमें डोनर के अंडाणु में डाल दिया जाता है। डोनर के अंडाणु से उसका न्यूक्लियस पहले ही निकाल दिया जाता है लेकिन उसमें डोनर के स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए मौजूद रहते हैं। आम डीएनए के उलट माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए मनुष्य की कोशिका ऊर्जा प्रदान करते हैं। कई वैज्ञानिक इस पद्धति से पैदा होने वाले बच्चों को “तीन अभिभावकों वाले बच्चे” कहने पर आपत्ति जताते हैं। ऐसे वैज्ञानिकों का कहना है कि इन बच्चों में महत्वपूर्ण डीएन दो लोगों के ही होते हैं ऐसे में उन्हें ‘तीन लोगों का बच्चा’ कहना उचित नहीं है।
मासट्रिस्ट यूनिवर्सिटी के जीनोम सेंटर के प्रोफेसर बर्ट स्मीट्स ने द इंडिपेंडेंट से कहा, “आखिरकार माइटोकॉन्ड्रियल दान के बाद माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए म्यूटेशन से दुनिया के पहले बच्चे का जन्म हो गया। ब्रिटेन के न्यूकैसल ग्रुप ने पहले ही दिखा दिया था कि ये तरीका सुरक्षित है और अस्पतालों में इसकी सुविधा प्रदान करना संबंधित देश के कानूनों और समय की बात है।”